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(क) मम्मण सेठ
पुरिमताल नगर का एक कृपण सेठ । (देखिए-रत्नपाल)
.. (ख) मम्मण सेठ
मम्मण सेठ राजगृह नगर का कोटीश्वर श्रेष्ठी था । उसके पास अब्जों की संपत्ति थी । अतुल वैभव स्वामी होने पर भी उसके हृदय में संतोष न था। एक बार उसके मन में विचार आया कि वह बैलों की एक ऐसी जोड़ी बनाए जैसी जोड़ी कभी किसी ने बनाई न हो तथा भविष्य: कोई बना न सके। उसने अपने भवन के तलघर में अमूल्य हीरे, मोती और जवाहरात से जटित पूर्णाकार दो स्वर्ण वृषभ बनाए। कहते हैं कि मगध साम्राज्य की समस्त धनराशि से भी अधिक धनराशि उन बैलों के निर्माण में व्यय की गई थी।
एक बैल तो पूर्णरूप से तैयार हो गया, पर दूसरा बैल कुछ अधूरा रह गया। अधूरे बैल को पूरा करने के लिए मम्मण दिन भर कड़ा श्रम करता। रात्रि में वह बरसाती नदी के मध्य में खड़ा हो जाता और पीछे से बहकर आती हुई लकड़ियों को बीनता । इस रात्रि - व्यवसाय में मम्मण विशुद्ध लाभ देखता था जिसमें व्यय कुछ नहीं करना होता था केवल लाभ ही लाभ उसे प्राप्त होता था । इस प्रकार अहर्निश के कड़े श्रम से मम्मण सेठ अधूरे बैल को पूर्ण करने का प्रयास कर रहा था ।
एक अर्धरात्रि में आकाश घने काले मेघों से भरा था । विकराल विद्युत् की गड़गड़ाहट और चमक से प्राणियों के हृदय दहल जाते थे। महाराज श्रेणिक और उनकी पटरानी चेलना राजमहल के कक्ष से बाहर झांककर प्रकृति के उस विकराल रूप को देख रहे थे । सहसा विद्युत् की चमक में उन्होंने नदी के मध्य में खड़े लकड़ियां बीनते एक व्यक्ति को देखा। उस दृश्य को देखकर महारानी चेलना का हृदय दयार्द्र हो उठा। उसने उपालंभ के भाव से महाराज श्रेणिक से कहा- महाराज! आपके राज्य में ऐसे अभावग्रस्त लोग भी हैं जिन्हें विकराल अर्धरात्रि में ऐसा कठिन श्रम करना पड़ता है। राजा होने के नाते क्या इसका उत्तरदायित्व आप पर नहीं है?
रानी के उपालंभ पर श्रेणिक गंभीर हो गए। उन्होंने उसी क्षण अपने सेवक को उस व्यक्ति के पास भेजा और कहलवाया कि दूसरे दिन वह राजदरबार में उपस्थित 1
दूसरे दिन मम्मण सेठ राजदरबार में उपस्थित हुआ । मम्मण ने श्रेणिक को बताया कि वही रात्रि में नदी से लकड़ियां बीन रहा था। इससे श्रेणिक को काफी आश्चर्य हुआ। उन्होंनें मम्मण से पूछा -श्रेष्ठिवर्य ! ऐसी क्या स्थिति आन पड़ी कि तुम्हें रात्रि में नदी से लकड़ियां बीननी पड़ीं?
मम्मण ने कहा, महाराज! मैं बैलों की एक जोड़ी चाहता हूं। एक बैल तो मेरे पास है, पर दूसरे बैल के लिए अपेक्षित राशि जुटाने के लिए मुझे यह श्रम करना पड़ रहा है।
श्रेणिक हंसे और बोले, मेरी गोशाला से तुम अपनी पसंद का बैल ले जा सकते हो ।
मम्मण ने कहा, महाराज! क्षमा करें! मेरे बैल की जोड़ी का बैल आपकी गोशाला में नहीं मिलेगा । श्रेणिक को बात चुभी । तीक्ष्ण स्वर में उन्होंने पूछा- ऐसी क्या विशेषता है तुम्हारे बैल में ? मम्मण ने कहा, महाराज! आप मेरे भवन पर पधारें और मेरे कथन के औचित्य - अनौचित्य का स्वयं निर्णय करें ।
दूसरे दिन महाराज श्रेणिक अपनी रानी चेलना के साथ मम्मण श्रेष्ठी के भवन पर गए। दुग्ध-धव ••• जैन चरित्र कोश
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