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भिक्षु के शरीर पर वे सब लक्षण पूर्ण प्रकट हैं जो सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार एक चक्रवर्ती के लक्षण होते हैं। पुष्यमित्र उद्वेलित बन गया। अपने शास्त्रों और अध्ययन को कोसने लगा। वह बड़बड़ाया-आज तक का मेरा अध्ययन व्यर्थ गया, सामुद्रिक शास्त्र समुद्र में फैंक देने के योग्य हैं।
कहते हैं कि उसी क्षण शक्रेन्द्र प्रभु की पर्युपासना के लिए वहां उपस्थित हुआ। पुष्यमित्र के मन के भाव पढ़कर शक्रेन्द्र ने कहा, सामुद्रिक शास्त्र मिथ्या नहीं हैं, तुम्हारा ज्ञान अधूरा है। जिन्हें तुम एक साधारण भिक्षु मानकर अपने शास्त्रों को कोस रहे हो, वे साधारण भिक्षु नहीं हैं! वे चक्रवर्तियों के चक्रवर्ती अरिहन्त प्रभु महावीर हैं। ___ इन्द्र की बात सुनकर सामुद्रिकवेत्ता पुष्यमित्र को अपनी भूल का परिज्ञान हुआ। वह प्रभु के चरणों पर अवनत हो गया। इन्द्र ने उसे मनोवांच्छित उपहार देकर उसके पुश्तों के दारिद्र्य को धो दिया। पूर्ण कुमार
समग्र परिचय गौतम के समान है। (देखिए-गौतम) (क) पूर्णभद्र
एक श्रेष्ठी-पुत्र। भवान्तर में वह भगवान ऋषभदेव की पुत्री ब्राह्मी के रूप में जन्मा। (देखिए-ब्राह्मी) (ख) पूर्णभद्र (गाथापति)
वाणिज्य ग्रामवासी एक प्रतिष्ठित गाथापति जो भगवान महावीर के पास दीक्षित हुआ तथा पांच वर्ष तक चारित्र पालकर विपुलाचल से सिद्ध हुआ।
- अन्तकृद्दशांगसूत्र वर्ग 6, अध्ययन 11 (ग) पूर्णभद्र (सेठ)
विशाला नगरी में रहने वाला एक मिथ्यात्वी सेठ। नया-नया सेठ बनने के कारण उसे अपनी धन-दौलत का भी विशेष अहंकार था। चार मास के उपवासी भगवान महावीर उसके द्वार पर गए तो उसने उपेक्षा दिखाते हुए अपनी दासी को आगन्तुक भिक्षु को कुछ देकर चलता करने के लिए कहा। दासी ने बासी उड़द के बांकुले भगवान के हाथ पर रखे, जिसे महावीर ने पूर्ण समता भाव से उदरस्थ किया। 'अहोदान' की दिव्य ध्वनियों के साथ जब देवों ने पञ्च दिव्य बरसाए तो पूर्ण को ज्ञात हुआ कि उसके द्वार पर आने वाला भिक्षु कोई साधारण भिक्षु नहीं बल्कि वीतराग महावीर हैं, जो देववन्दित हैं। दिखिए-जीर्ण सेठ)
-त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र पूर्णमित्रा
कलिंग देश के महान यशस्वी जैन राजा खारवेल की पटरानी एवं एक अनन्य श्रमणोपासिका। कलिंग के कुमारिपर्वत पर श्रुत संरक्षा के लिए महाराज खारवेल ने एक बृहद् सम्मेलन आहूत किया था, जिसमें कई सौ श्रमणों, श्रमणियों, श्रावकों और श्राविकाओं ने भाग लिया था। हिमवन्त स्थविरावली के अनुसार सम्मेलन में श्राविका पूर्णमित्रा के नेतृत्व में 600 श्राविकाओं ने भाग लिया था।
पूर्णमित्रा एक आदर्श श्राविका थी और जैन धर्म के प्रति उसके हृदय में गहरी आस्था थी। धर्म प्रभावना और धर्म प्रचार के कार्यक्रमों में उसकी अपूर्व रुचि थी और उनमें वह उत्साह से सम्मिलित होती थी।
-हिमवन्त स्थविरावली ... जैन चरित्र कोश ...
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