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आखिर वैसा ही किया गया। राजकुमार की आयु छिपाकर उसका सम्बन्ध कनकवतीपुरी नगरी के राजा मकरध्वज की पुत्री बंसाला से किया गया। साथ ही राजा मकरध्वज से यह वचन भी ले लिया गया कि राजकुमारी का विवाह राजकुमार की फेंटा-कटार से सम्पन्न होगा। सुनिश्चित समय पर विवाह हुआ। उस समय राजकुमा
मास था और राजकुमारी की आयु बारह वर्ष थी। विवाह की प्रथम रात्रि में ही बंसाला को ज्ञात हो गया कि उसके साथ छल हआ है। परन्त वह भारतीय परम्परा की वह सन्नारी थी, जो पति को प्रत्येक रूप में अपना देवता मानती हैं। उसने अपने शिशु-पति का पालन-पोषण किया। वह जंगल में रहकर अपने पति का पोषण कर रही थी तो एक राजा ने उसके पति का अपहरण कर लिया। इकलौता पुत्र राजा की दो रानियों की ईर्ष्या का कारण बना तो राजा ने एक पेटी में रखकर उसे गंगा नदी में बहा दिया। वह पेटी काशी के एक समृद्ध गूजर के हाथ लगी, जिसने मुकनसिंह को अपना पुत्र मानकर उसका पालन-पोषण किया। देव सहायता से बंसाला भी काशी पहुंच गई और उक्त गूजर के घर एक दासी के रूप में सेवा-कार्य पा गई। वहां रहकर बंसाला ने अपने पति का पालन-पोषण किया। उसी नगर में रहकर मुकनसिंह युवा हुआ। उसके पुण्य कर्म भी क्रमशः प्रकट होते गए। उसने वहां रहते हुए अनेक राजकुमारियों से विवाह किया और कई देशों का राज्य प्राप्त किया। ____ अंततः मुकनसिंह को बंसाला के अपूर्व त्याग का यथार्थ ज्ञात हुआ। वह कृतज्ञता से भर गया और उसने उसे अपनी पटराणी बनाया। बाद में मुकनसिंह अपने नगर पृथ्वीपुर लौटा। महाराज जयसिंह ने उसे राजगद्दी पर बैठाकर दीक्षा ले ली। मुकनसिंह ने सुदीर्घ काल तक शासन किया। बंसाला ने भी पतिव्रत धर्म का एकनिष्ठ पालन करते हुए आयु के उत्तरार्ध पक्ष में संयम धारण कर परमपद प्राप्त किया। मुकनसिंह ने भी अपनी पटरानी का अनुगमन कर शिव पद प्राप्त किया। बनारसी दास (पंडित)
ई. की 16-वीं 17-वीं सदी के एक विद्वान जैन श्रावक। पंडित बनारसीदास राजसम्मान प्राप्त व्यक्ति थे। व्यापारी, कवि, विद्वान और समाज सुधारक थे। बहुभाषाविद् थे। साहित्य की विधा-आत्मकथा लेखन के वे आदि पुरुष थे।
पण्डित बनारसीदास वैश्य थे। उनका परिवार राजपरिवार का विश्वसनीय और कृपापात्र था। उनके पितामह और मातामह राज्य के उच्च पदों पर कार्य कर चके थे। जौनपुर में पंडित बनारसीदास ने अपना पैतृक व्यवसाय (जवाहरात) स्थापित किया और अन्य कई व्यापार भी किए। पर अध्यात्म और साहित्यरसिया पंडित जी अधिक समय तक व्यापार में स्वयं को उलझा कर न रख सके। जौनपुर छोड़कर वे आगरा आ गए और वहीं पर स्थायी रूप से बस गए। वहां उनकी एक विद्वद्मण्डली बन गई, जिसमें कई विद्वान थे। विद्वद्गोष्ठियों और साहित्य साधना में पंडित जी का अधिकांश समय समर्पित होता था।
मुगल बादशाह शाहजहां पंडित जी का बहुत मान करते थे और उन्हें अपना अंतरंग मित्र मानते थे। अपने युग में ही पंडित जी ने पर्याप्त सुयश अर्जित किया और वे प्रायः भारत-भर के जैन समाज में अपनी विशेष पहचान और प्रतिष्ठा रखते थे। ___पंडित बनारसीदास जी ने (1586-1641) अपने 55 वर्ष के जीवन के आधार पर अपनी आत्मकथा 'अर्धकथानक' नाम से लिखी, जो साहित्यिक क्षेत्र में इस विधा का प्रथम ग्रन्थ माना जाता है।
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