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पश्चात् यह स्पष्ट हो गया कि भरत के अपने ही निन्यानवे भाई अभी तक अविजित हैं। भरत ने बाहुबली आदि अपने भ्राताओं के पास आदेश पत्र भेजे कि वे उसकी अधीनता स्वीकार कर लें। अठानवे छोटे भाई भरत के इस व्यवहार से क्षुब्ध बन गए। उन्हें पराधीनता स्वीकार न थी। वे भगवान ऋषभदेव की शरण में पहुंचे। भगवान ने उन्हें जागरण का उपदेश दिया, जिसे सुनकर वे प्रबुद्ध बन गए और दीक्षा धारण कर ली। ___बाहुबली स्वाभिमानी और बली थे। उन्होंने भरत की अधीनता अस्वीकार कर दी। परिणामतः दो भाइयों के मध्य युद्ध की ठन गई। कुछ अनुभवी और वृद्ध लोगों के बीच-बचाव करने पर दोनों भाई व्यक्तिगत शक्ति परीक्षण के लिए तैयार हो गए। दोनों के मध्य ध्वनि-युद्ध, दृष्टियुद्ध, मुष्टियुद्ध, बाहुयुद्ध और दण्डयुद्ध लड़े गए। सभी प्रकार के युद्धों में बाहुबली जीत गए। पराजित भरत खिन्न हो उठे। विवेकान्ध होकर उन्होंने बाहुबली पर सुदर्शन चक्र से प्रहार कर दिया। परन्तु सुदर्शन चक्र अपनों का वध नहीं करता। बाहुबली की प्रदक्षिणा कर चक्र लौट आया। इस बात से बाहुबली रोषारुण हो उठे। मुट्ठी तानकर भरत का वध करने के लिए दौड़ पड़े। बाहुबली के रोष को देखकर दर्शक स्तंभित हो गए। भरत जी की संभावित मृत्यु से सब
ओर सन्नाटा छा गया। उस क्षण देवों ने मध्यस्थता की। बाहुबली को समझाया कि उन जैसे प्रामाणिक पुरुष को अपने अग्रज का वध करना शोभा नहीं देता। बाहुबली रुक गए। वीरों का वार अमोघ होता है इसलिए उन्होंने उठे हुए हाथ से पंचमुष्टि लोच कर लिया और मुनि हो गए।
बाहुबली मुनि होकर भगवान के पास जाने को तत्पर हुए तो उनके मन में यह विचार जागा कि भगवान ऋषभ के पास जाने पर उन्हें रत्नाधिक व्यवस्था का पालन करना पड़ेगा और पूर्वदीक्षित अनुजों को पादवन्दन करना पड़ेगा। उन्हें केवलज्ञान अर्जित करके ही भगवान के पास जाना चाहिए। इस विचार से रणांगन में ही वे दैहिक चंचलता को संवरित कर अचल ध्यानारूढ़ हो गए। एक वर्ष तक प्रस्तर प्रतिमा बने खड़े रहे। देह में पक्षियों ने घोंसले बना लिए। पर मन में सूक्ष्म अहं की मेख गड़ी थी। जहां अहं हो, वहां कैवल्य कैसे सधे? सो उन्हें केवलज्ञान नहीं हुआ। भगवान ऋषभ बाहुबली के भावों को देख-जान रहे थे। उन्होंने ब्राह्मी और सुंदरी, दो साध्वियों को बाहुबली को प्रतिबोध देने भेजा। साध्वियां बाहुबली के पास पहुंची और उन्हें प्रतिबोध देते हुए बोलीं-भाई! हाथी से नीचे उतरो। हाथी पर चढ़े-चढ़े केवलज्ञान नहीं होगा।
बाहुबली ने सुना। चिन्तन चला। बोध जागा-कि मैं अहं के हाथी पर सवार हूं। सब छोड़कर भी मैं अहं को न छोड़ सका। मैं इसी क्षण जाकर पूर्वदीक्षित अनुजों को वन्दन करूंगा। अहं गलते ही कैवल्य प्रकट हो गया। बाहुबली ने निर्वाण पद प्राप्त किया।
-त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र बाहुस्वामी (विहरमान तीर्थंकर)
तृतीय विहरमान तीर्थंकर, जो वर्तमान में जम्बूद्वीप की पूर्व महाविदेह के वच्छ विजय में विराजमान हैं। सुसीमापुरी नगरी के महाराज सुग्रीव और उनकी रानी विजया उनके जनक और जननी हैं। तिरासी लाख पूर्व की आयु तक प्रभु गृहवास में रहे। विवाह किया और राज्य भी किया। जब उनका आयुष्य एक लाख पूर्व का शेष रहा तो प्रभु ने दीक्षा ग्रहण की और शीघ्र ही केवलज्ञान प्राप्त किया। तीर्थ की स्थापना कर तीर्थंकर हुए। वर्तमान में भव्य जीवों को धर्म का स्वरूप प्रदान करते हुए आप वच्छ विजय में विहरणशील
बिंदुसार (राजा)
___ चंद्रगुप्त मौर्य का उसकी पटरानी नन्दसुता सुप्रभा से उत्पन्न पुत्र । बिंदुसार अपने समय का एक प्रभावशाली ... 370
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