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बंकचूल
एक राजकुमार, जिसे माता-पिता ने पुष्पचूल नाम दिया था पर अपने कर्म से वह बंकचूल कहलाने लगा। राजकुमार होते हुए भी वह चोरी जैसा अधम कर्म करता था। उसकी एक बहिन थी, पुष्पचूला। पर अपने भाई के प्रत्येक निन्द्य कार्य में साथ निभाने के कारण वह बंकचूला कही जाने लगी थी। भाई-बहिन के चौर्य-अत्याचारों से जब प्रजा त्राहि-त्राहि कर उठी तो पिता ने पुत्र और पुत्री को अपने देश से निकाल दिया। ये दोनों एक भीलपल्ली में पहुंचे और बंकचूल उस पल्ली का शीघ्र ही सरदार बन बैठा। यहां अपना प्रमुख शौक पूरा करने का बंकचूल को पर्याप्त अवकाश मिला।
एक बार कारणवश एक मुनि संघ को, जिसके प्रमुख आचार्य चन्द्रयश थे, चोरपल्ली में वर्षावास करना पड़ा। बंकचूल ने इस शर्त के साथ मुनियों को अपनी पल्ली में वर्षावास बिताने दिया कि वे चारों मास धर्मोपदेश नहीं करेंगे। आखिर वर्षावास की परिसमाप्ति पर मुनि प्रमुख ने विहार करने से पूर्व चार शिक्षावचन बंकचूल से कहे-1. अजाना फल कभी मत खाना, 2. किसी पर प्रहार करने से पूर्व सात-आठ कदम पीछे हटना, 3. राजा की रानी को माता मानना, 4. भूलकर भी कौव्वे का मांस नहीं खाना। बंकचूल दृढ़निश्चयी तो था ही, उसने मुनि के व्यवहार से खुश होकर उनके वचनों का पालन करने का दृढ़ निश्चय कर लिया।
किसी समय बंकचूल जब अपने साथियों के साथ चोरी करके लौट रहा था तो उसे और उसके साथियों को बहुत भूख और प्यास लगी। मार्ग में वृक्षों पर बड़े सुन्दर फल लगे हुए थे। पर अजाना फल खाने के व्रत के कारण बंकचूल ने उन फलों को नहीं खाया। शेष साथियों ने वे फल खाए, पर कुछ ही देर बाद उन सबका निधन हो गया। इस घटना से बंकचूल का हृदय मुनि के प्रति श्रद्धा से भर गया और वह पूर्वापक्षया अधिक दृढ़ता से मुनि के वचनों का पालन करने लगा।
फिर किसी समय जब चोरी आदि कर्मों से निपटकर देर रात बंकचूल घर लौटा तो उसने अपनी पत्नी के साथ किसी पुरुष को सोते हुए देखा। आग-बबूला बन जब उसने उस पुरुष पर आक्रमण करना चाहा तो मुनि-वचन के पालन के लिए वह नंगी तलवार हाथ में ले आक्रमण के लिए सात-आठ कदम पीछे हटा। इससे उसकी तलवार दीवार से टकरा गई। आवाज होने से वह पुरुष जगा। वस्तुतः वह कोई पुरुष नहीं बल्कि उसी की बहिन थी, जिसने दिन में किसी रीति की संपूर्ति के लिए पुरुषों के वस्त्र धारण किए थे और प्रमादवश उन्हीं वस्त्रों में अपनी भाभी के पास सो गई थी। बंकचूल का विश्वास मुनि के प्रति और गहरा हो गया। ____एक बार बंकचूल राजमहल में चोरी के लिए गया तो वहां रानी उसके रूप पर मुग्ध हो गई और उससे भोग-प्रार्थना करने लगी। बंकचूल ने मुनि-वचन के अनुरूप रानी को मां का दर्जा देकर उसका प्रस्ताव ठुकरा दिया। राजा छिपकर यह सब देख रहा था। राजा बंकचूल की दृढ़धर्मिता को देखकर इतना खुश हुआ कि उसे अपना पुत्र बनाकर युवराज पद दे दिया। बंकचूल राजकुमार बन अपनी बहिन और पत्नी के साथ राजमहल ... जैन चरित्र कोश ...
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