________________
(ङ) पुष्पदंत (कवि)
ई. की दसवीं शती के एक ख्यातिलब्ध जैन कवि।
मान्यखेट नगर के महामात्य भरत और नन्न के यहां रहकर कविवर पुष्पदंत ने कई ग्रन्थों की रचना की। पुष्पदंत कृत 'जसहर चरिउ' काफी प्रसिद्ध है। यह एक खण्ड काव्य है और इसमें पुण्य पुञ्ज यशोधर के चरित्र का चित्रण कवि ने किया है।
महाकवि पुष्पदंत के कई ग्रन्थ उत्कृष्ट कोटि के हैं और उन्हें अपभ्रंश के उच्चकोटि के कवियों में ऊपरी स्थान प्रदान करते हैं। कविवर पुष्पदंत को 'सरस्वती निलय' और 'काव्यरत्नाकर' विरुद प्राप्त थे।
-तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा पुष्पभूति (आचार्य)
निर्ग्रन्थ-परम्परा के एक महान आचार्य । उनका प्रभाव दिग्-दिगन्तों में प्रसृत था। उनके हजारों श्रावक थे। सिंहवर्धन नगर का राजा मुडिवक उनका विशेष भक्त था। आचार्य श्री के अनेक शिष्य थे। पर सभी अबहुश्रुत और अल्पज्ञ थे। पुष्यमित्र नामक एक शिष्य बहुश्रुत और विनयवान था, पर वह शिथिलाचारी था। आचार्य श्री की आज्ञा से वह स्वतंत्र विहार करता था। एक बार आचार्य श्री ने महाप्राण ध्यान करने का निश्चय किया। ध्यान में प्रवेश करने के लिए आवश्यक था कि कोई बहुश्रुत शिष्य सहयोगी बने। आचार्य श्री के दृष्टिपथ पर पुष्यमित्र मुनि आए। उन्होंने पुष्यमित्र मुनि को अपने पास बुलाया और उनको समझाया कि वे महाप्राण ध्यान में प्रवेश ले रहे हैं। ध्यान की अवधि में उनसे कोई न मिले, दर्शन-वन्दन भी न करे। यही बात आचार्य श्री ने अपने अन्य शिष्यों को भी समझाई। तदनन्तर आचार्य श्री एक भीतरी कक्ष में चले गए और भूमि पर लेटकर ध्यान में प्रवेश कर गए। समाधिस्थ आचार्य श्री का शरीर निश्चेष्ट और शांत हो गया। श्वास इतना सूक्ष्म हो गया कि कुशल से कुशल वैद्य भी पहचान न पाए कि वे जीवित हैं या मृत। आचार्य श्री को ध्यानावस्था में एक मास बीत गया। मुनि पुष्यमित्र कक्ष के द्वार पर अप्रमत्त रहकर आचार्य श्री के ध्यान-सहयोगी थे। एक मास बीतने पर भी आचार्य श्री कक्ष से बाहर नहीं आए तो अन्य शिष्य संदेहशील बन गए। एक बार जब पुष्यमित्र मुनि शरीर-चिन्ता के निवारण के लिए उपाश्रय से बाहर गए थे तो शिष्यों ने कक्ष में प्रवेश किया और आचार्य श्री को देखा। आचार्य श्री को निश्चेष्ट और निस्पंद देखकर वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि आचार्य श्री का देहान्त हो चुका है। उन्होंने श्रावकों को बुलाकर आचार्य श्री के देहावसान की सूचना दी। श्रावक एकत्रित होकर उपाश्रय में पहुंचे। राजा मुंडिवक भी उपस्थित हुआ। मुनि पुष्यमित्र ने सभी मुनियों और श्रावकों को समझाने का यत्न किया कि आचार्य श्री स्वस्थ हैं और ध्यानस्थ हैं। पर उनकी बात किसी ने भी स्वीकार नहीं की और एक स्वर से मांग की कि यदि आचार्य श्री स्वस्थ हैं तो उन्हें जगाकर दिखाएं।
आखिर मुनि पुष्यमित्र ने आचार्य श्री के दाएं पैर के अंगुष्ठ का स्पर्श किया। आचार्य श्री बैठ गए। शिष्यों और जनसमूह को उपस्थित देखकर आचार्य श्री ने उसका कारण पूछा। मुनि पुष्यमित्र ने यथास्थिति आचार्य श्री के समक्ष स्पष्ट की। शिष्यों की अज्ञानता पर आचार्य श्री अनमने हो गए। अपनी अज्ञानता पर शिष्य लज्जित हो गए। शिष्यों और श्रावकों ने आचार्य श्री और मुनि पुष्यमित्र से क्षमायाचना की। उस घटना के पश्चात् सभी शिष्य श्रुताराधना में विशेष श्रमशील बन गए।
__-आवश्यक नियुक्ति / जैन कथा रत्न कोष भाग 6 / धर्मोपदेश माला ... जैन चरित्र कोश ...
-- 345 ...