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पाकर नल बहुत दुखी हुआ। पर नागराज अन्य कोई नहीं बल्कि उसी का पिता नैषध था, जो पांचवें स्वर्ग में देवता बना था। उसने प्रकट होकर नल से कहा कि उसका यह कुब्जरूप संकट की इस घड़ी में उसके लिए रक्षक होगा। साथ ही उसने एक श्रीफल और एक करंडिका नल को दिए। बताया कि इनके द्वारा तुम अपना मूल रूप प्राप्त कर सकते हो। कहकर नैषध अन्तर्धान हो गया ।
सुसुमारपुर नरेश दधिपर्ण के पास नल को रसोइए का कार्य मिल गया। वहां उसने गजदमनी विद्या से एक मदोन्मत्त हाथी को वश में कर पर्याप्त सम्मान अर्जित किया। वह सूर्यपाक रसवती बनाने में भी कुशल था। उधर महाराज भीम ने नल की खोज के लिए दमयन्ती के पुनर्स्वयंवर की घोषणा की । दधिपर्ण के पास जब यह सूचना पहुंची तो स्वयंवर का एक ही दिन शेष था। सैकड़ों कोस की दूरी एक ही दिन में तय करना लगभग असंभव था। पर नल ने उसे विश्वास दिया कि वह उसे उचित समय पर कुडिनपुर पहुंचा देगा । नल अश्व संचालन कला में दक्ष था । आखिर कुब्ज नल दधिपर्ण नरेश का सारथी बनकर कुडिनपुर पहुंचा। उसने श्रीफल को तोड़ा तो उसमें से दिव्य वस्त्र निकले । करंडिका से एक अमूल्य हार प्राप्त हुआ। उन वस्त्रों और हार को धारण करते ही नल अपने मूल रूप में आ गया। वह स्वयंवर मण्डप में पहुंचा । दमयन्ती ने नल को अपना पति चुनना ही था। महाराज भीम की कृत्रिम स्वयंवर की युक्ति सफल हो गई ।
उधर कुबेर के शासन से अयोध्या की जनता पूर्णतः असंतुष्ट थी। अपनी अयोग्यता से कुबेर भी परिचि हो चुका था। वह नल के समक्ष नत हो गया। अपनी धूर्तता के लिए उसने नल से क्षमा-याचना की। पुनः अयोध्या के सिंहासन पर आरूढ़ हुए ।
सुदीर्घकाल तक सुशासन के पश्चात् नल ने अपने पुत्र को राज सिंहासन दिया और स्वयं संयम की साधना कर देवलोक में गया। महासती दमयन्ती ने भी संयम स्वीकार किया और स्वर्ग प्राप्त किया। - त्रिषष्टि शलाकापुरुषचरित्र, पर्व 8
(क) नवमिका (आर्या )
इनका समग्र परिचय कमला आर्या के समान है । (देखिए - कमला आर्या)
(ख) नवमिका (आर्या )
इनका समग्र परिचय काली आर्या के समान है। विशेषता इतनी है कि इनका जन्म काम्पिल्यपुर नगर में हुआ था और मृत्यु के पश्चात् यह शक्रेन्द्र महाराज की पट्टरानी के रूप में जन्मी । (देखिए -काली आर्या) -ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि. श्रु., वर्ग 9, अ. 6
नवमुख
-ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि. श्रु., वर्ग 5 अ. 22
वर्तमान अवसर्पिणी काल के अष्टम् नारद । ये श्री राम I
समय में हुए थे। (देखिए नारद)
नहपान
सौराष्ट्र और गुजरात का शकवंशी एक राजा, जो ईसा की प्रथम शताब्दी में हुआ । अनार्य कुल में उत्पन्न हुए इस राजा ने भारतवर्ष में रहकर यहां के आर्य धर्म को अपनाया। जैन धर्म का उसके जीवन पर उत्कृष्ट प्रभाव था। कहते हैं कि उसने चालीस वर्ष तक शासन करने के पश्चात् अपने नगरसेठ अंतरंग सुबुद्धि के साथ जिनदीक्षा धारण कर ली थी। संभवतः उन्होंने आचार्य अर्हद्बलि के चरणों में प्रव्रज्या धारण जैन चरित्र कोश •••
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