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उसके हाथ पर रखकर बोला, भाई! वह बकरा मुझे लौटा दो। वधिक ने कहा, सेठ! तुम बहुत विलम्ब से आए हो। वह तो लोगों का आहार बन चुका है।
रोता हुआ सेठ मुनि के पास पहुंचा। उसने मुनिश्री से पूछा, भगवन ! मेरे पिता किस गति में गए हैं? मुनि ने फरमाया, तुम्हारे पिता क्रोध और क्रूरता से भरे हृदय से वधिक के प्रहार का शिकार बनकर नरक में गए हैं। सेठ ने कहा, गुरुदेव! मेरा मार्गदर्शन कीजिए कि मुझे इन सात दिनों में कैसे जीवन का उपयोग करना चाहिए। मुनि ने कहा, सात पल का सम्यक्त्व चारित्र भी आत्मोत्थान के लिए उपाय बन जाता है। तुम्हारे लिए यही उपाय है कि तुम चारित्र की आराधना में स्वयं को अर्पित कर दो।
मुनि के मार्गदर्शन पर नागदत्त सेठ ने बिना एक पल गंवाए पंच महाव्रत धारण कर लिए। प्रथम चार दिनों तक उसने परीषह-रहित संयम की आराधना की। पांचवें दिन उसे शिरःशूल हो गया। अंतिम तीन दिनों तक उसने पूरे समता भाव से भयंकर शिरःशूल से उत्पन्न वेदना को सहन किया। सातवें दिन उसकी समाधि मृत्यु हुई। देहोत्सर्ग कर वह वैमानिक देव बना। देव भव से च्यवकर वह मनुष्य भव धारण करेगा और निरतिचार संयम की आराधना द्वारा सर्व-कर्म विमुक्त बन मोक्ष में जाएगा। । वारा सव-कम विमुक्त बन माक्ष में जाएगा।
-जैन कथार्णव नागश्री
चम्पानगरी के रहने वाले ब्राह्मण सोम की पत्नी। सोम के दो सहोदर थे सोमदत्त और सोमभूति, जिनकी पत्नियों के नाम क्रमशः भूतश्री और यक्षश्री थे। तीनों भाइयों मे प्रगाढ़ प्रेम था। प्रेम को सुस्थिर रखने के लिए तीनों भाइयों ने एक व्यवस्था की थी कि वे प्रतिदिन साथ बैठकर भोजन करेंगे और क्रम से एक-एक भाई के घर सभी का भोजन बनेगा। ___ एक दिन जब भोजन बनाने की बारी नागश्री की थी तो उसने तुम्बे का शाक बनाया। शाक तैयार होने पर उसने उसे चखा तो उसका मुख विषाक्त बन गया क्योंकि तुम्बी कड़वी थी। नागश्री ने उस शाक को ढाँप कर एक ओर रख दिया तथा अन्य शाक बनाकर परिवार को भोजन करा दिया।
नागश्री विषशाक को फैंकने का विचार कर ही रही थी कि उसी समय मासोपवासी मुनि धर्मरुचि अणगार भिक्षा के लिए पधारे। नागश्री ने मुनि के पात्र को उचित स्थान समझकर वह सारा शाक उसमें डाल दिया। मुनि भिक्षा लेकर अपने गुरु धर्मघोष के पास आए। शाक की गंध से ही गुरु ने अनुमान लगा लिया कि वह अखाद्य है। उन्होंने शिष्य को आदेश दिया कि वह उस शाक को निरवद्य स्थान पर परठ आए। धर्मरुचि अणगार शाक को परठने जंगल में गए। संभावित हिंसा से बचने के लिए मुनि ने उस शाक का आहार कर लिया और संथारा कर देहोत्सर्ग कर दिया। ____ शाक के खाने से तपस्वी मुनि की मृत्यु की खबर पूरे नगर में फैल गई। खुलते-खुलते भेद खुल ही गया। घरवालों ने नागश्री की भर्त्सना कर उसे घर से निकाल दिया। नागश्री जहां भी गई, लोगों ने उसे धिक्कारा और उसके कुत्सित कृत्य की निंदा की। यत्र-तत्र भटकते हुए उसके शरीर में सोलह महारोग उत्पन्न हो गए। गहन आर्त और रौद्र विचारों में डूबी नागश्री मरकर छठी नरक में गई। . नरक की आयु पूर्ण कर वह सुदीर्घ काल तक तिर्यंच आदि योनियों में भटकते हुए चम्पानगरी के सेठ सागरदत्त के घर पुत्री रूप में जन्मी, जहां उसे सुकुमारिका नाम मिला। जब वह युवा हुई तो जिनदत्त सेठ के पुत्र सागर के साथ उसका विवाह हुआ। पर पूर्व पापोदय से सुकुमारिका की देह का स्पर्श अंगार-स्पर्श के समान था। परिणामतः उसके पति ने प्रथम रात्रि में ही उसका परित्याग कर दिया। ...314.00
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