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आया। उसने देवबल से राजकुमार को कहीं छिपा दिया और एक संन्यासी का रूप धारण कर महलों में पहुंचा। महारानी के पास पहुंचकर उसने कहा-'महारानी! अनर्थ हो गया! जंगल में आपके पुत्र को सिंह ने खा लिया।' कहकर संन्यासी रोने लगा।
इस पर महारानी ने कहा-महाराज! इसमें रोने की क्या बात है! आप शांत रहिए! हमारे पुत्र का आयुष्य कर्म पूरा हो गया होगा! आयुष्य कर्म पूरा हो जाने पर मर जाना शरीर का धर्म है। मैं महाराज को सूचना भेजती हूं जिससे कुमार की दाह क्रिया का प्रबंध किया जा सके। ___ महारानी की बात सुनकर संन्यासी रूपी देव हैरान रह गया। वह वहां से चला और महाराज के पास पहुंचा। रोते हुए उसने कहा-महाराज! अनहोनी हो गई! हमारे राजकुमार को जंगल में शेर ने खा लिया है। __निर्मोही नृप ने सुना, उनके मुख पर शोक और शिकन की एक भी रेखा नहीं उभरी। उन्होंने शांत स्वर में कहा-महात्मन! प्रत्येक मानव मरणधर्मा है। आयुकर्म की समाप्ति पर मानव को शरीर छोड़ देना पड़ता है। राजकुमार का आयुकर्म भी पूर्ण हो गया है इसलिए वह हमसे विदा हो गया है।
राजा और रानी की मोहविजय को देखकर देवता दंग रह गया। उसने वास्तविक रूप में प्रकट होकर राजा और रानी को प्रणाम किया और इंद्र द्वारा की गई प्रशंसा और उस द्वारा ली गई परीक्षा की पूरी बात कही। उसने राजकुमार को प्रकट कर दिया। राजकुमार को सकुशल पाकर भी राजा-रानी सामान्य रहे।
कालांतर में पुत्र को सिंहासनासीन करके निर्मोही नृप और उनकी रानी ने प्रव्रज्या अंगीकार की और जीवन के अंत में मोक्ष प्राप्त किया। निशुंभ - हरिपुर नरेश । वह पंचम् प्रतिवासुदेव था, जिसका वध पुरुषसिंह वासुदेव ने किया था। निशुंभा (आर्या)
निशुंभा आर्या का समग्र परिचय शुभा आर्या के समान है। विशेष इतना ही है कि इनके पिता का नाम निशुंभ और माता का नाम निशुंभ श्री था। (दखिए-शुंभा आर्या अथवा काली आया)
-ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि.श्रु., द्वि.वर्ग, अध्ययन 2 निषढ राजा
चतुर्थ विहरमान तीर्थंकर प्रभु सुबाहु स्वामी के जनक। दिखिए-सुबाहु स्वामी) निषध कुमार
बलभद्र और रेवती के पुत्र, परम सुकुमार और अनुपम रूपवान राजकुमार। यौवन में पचास कन्याओं से उनका विवाह हुआ। एक बार भगवान अरिष्टनेमि का प्रवचन सुनकर कुमार प्रतिबद्ध हुए और उन्होंने श्रावक धर्म अंगीकार किया। ___किसी समय निषधकुमार भगवान अरिष्टनेमि के पास बैठे हुए थे। उनके लावण्य और तेज को देखकर भगवान के प्रमुख गणधर वरदत्त ने भगवान से निषध कुमार का पूर्वभव पूछा। भगवान ने बताया-अपने पूर्वभव में निषधकुमार रोहिड़ नगर के महाराज महाबल और उनकी पटरानी पद्मा का वीरंगत नामक पुत्र था। वहां बत्तीस कन्याओं के साथ उसका विवाह हुआ। सिद्धार्थ नामक धर्माचार्य के उपदेश से जाग्रत होकर वीरंगत ने संयम धारण किया और उग्र साधना से अपनी देह का रक्त और मांस सुखा दिया। दो मास ... 318 -
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