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चर ने राजकुमार को सूचना दे दी । राजकुमार वृषभध्वज दौड़कर पद्मरुचि के पास पहुंचा। पद्मरुचि के चरणों में प्रणाम कर राजकुमार ने स्पष्ट किया कि पूर्वजन्म में वह बैल था और उन्हीं की कृपा से राजकुमार ना है। पद्मरुचि और वृषभध्वज जीवन भर सघन स्नेहसूत्र में बंधे रहे ।
जैन रामायण के अनुसार भवान्तर में पद्मरुचि ही राम बने और वृषभध्वज सुग्रीव बना । जन्मान्तर में भी दोनों का स्नेह पुनर्जीवित बना । -आख्यान मणिकोष
पद्मश्री
चम्पानगरी के श्रेष्ठी धर्मानंद की इकलौती सन्तान, एक जैनधर्मानुरागिनी रूप- गुण सम्पन्न विदुषी बाला । धर्मानंद की इच्छा थी कि वह अपनी पुत्री का विवाह समान कुल आचार वाले घर में करेगा । उसी के लिए वह प्रयत्नरत था । पद्मश्री के समान रूप-गुण- कुल सम्पन्न युवक की उसे तलाश थी।
किसी समय बौद्ध धर्मानुयायी युवक बुद्धसिंह की दृष्टि पद्मश्री के रूप पर पड़ी। वह उसके रूप का दीवाना बन गया। उसने अपने मन के भाव अपने पिता बुद्धसागर के समक्ष प्रकट किए और निवेदन किया कि अगर उसका विवाह पद्मश्री के साथ नहीं होगा तो वह जीवित नहीं रह पाएगा। पिता ने पुत्र के हृदय की स्थिति को समझा और उसे विश्वस्त किया कि वह चाहे जैसे भी बन पड़ेगा, उसका विवाह पद्मश्री के साथ ही कराएगा।
बुद्धसागर एक धर्मान्ध वणिक् था । वह अपने धर्म को ही धर्म मानता था। शेष जैन, वैदिक आदि धर्मों से घृणा करता था । पर पुत्र के आग्रह पर उसे कपट- श्रावक का अभिनय करना पड़ा। अपने अभिनय में वह सफल रहा और श्रेष्ठी धर्मानंद को उसने प्रभावित कर लिया। जब धर्मानंद से उसकी मैत्री स्थापित हो गई तो एक दिन अवसर साधकर उसने उसकी पुत्री का हाथ अपने पुत्र के लिए मांग लिया । धर्मानंद उसके कपट को नहीं समझ पाया और उसने उस के प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार कर लिया ।
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पद्मश्री ने श्वसुर गृह में प्रवेश किया। प्रथम दिन ही वह समझ गई कि उसके साथ धोखा हुआ है । पर वह विदुषी थी और जानती थी कि धर्म तो आत्मा की वस्तु है और उसका आराधन सभी स्थानों पर किया जा सकता है। उसके समक्ष जटिलताएं तब उपस्थित हुईं, जब उसे बौद्ध धर्म अंगीकार करने के लिए बाध्य किया गया । इसके लिए उसे विवश ही नहीं किया गया बल्कि मानसिक और शारीरिक प्रताड़नाएं भी दी गईं। सास, श्वसुर और ननद, तीनों मिलकर पद्मश्री को प्रताड़ित करते । पर वह वीर बाला समस्त प्रताड़नाओं को सहकर भी प्रसन्न थी । उसने न तो अपने आत्मधर्म का त्याग किया और न अन्य धर्म का ग्रहण अथवा तिरस्कार किया ।
एक बार पद्मश्री को सूचना मिली कि उसके माता-पिता अस्वस्थ हैं । सास- श्वसुर की आज्ञा प्राप्त कर वह अपने घर गई। मात-पिता से उनके साथ हुए छल का रहस्य प्रच्छन्न न रह सका। वे इस आघात को सह न सके और अकाल कालकवलित हो गए।
पद्मश्री के माता-पिता के अवसान के पश्चात् उसके सास- श्वसुर और ननद का प्रकोप भी शतगुणित बन गया। जब उन्हें यह निश्चय हो गया कि वे प्रताड़ना से पद्मश्री को अपना धर्म अंगीकार नहीं करा पाएंगे तो उन्होंने उसकी हत्या का क्रूर संकल्प ठान लिया । एक षड्यन्त्र रचा गया और उसके अनुसार एक सपेरे से कृष्ण विषधर खरीदा गया । कृष्ण विषधर को एक घड़े में बन्द कर दिया गया। योजनानुसार सास ने अपने स्वर को मधुर बनाते हुए पद्मश्री से कहा, बेटी ! भगवान की आराधना के लिए हमें मंदिर में चलना ••• जैन चरित्र कोश
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