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हुए और नमि राजर्षि की स्तुति करते हुए अपने स्थान पर लौट गए। उग्र साधना से सर्व कर्म खपा कर नमिराजर्षि सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हुए। ये प्रत्येक बुद्ध कहलाए। नमि-विनमि ____भगवान ऋषभदेव के साथ दीक्षित होने वाले दो सामन्तों, कच्छ और महाकच्छ, के पुत्र। जब भगवान ने अपने पुत्रों को राज्य बांटकर दीक्षा ली, उस समय नमि और विनमि अन्यत्र गए हुए थे। लौटे तो उन्हें पूरी बात ज्ञात हुई। वे भगवान के पास गए और उनसे अपने हिस्से का राज्य मांगने लगे। पर भगवान तो मौन साधना कर रहे थे! नमि और विनमि भगवान के साथ रहकर उनकी सेवा करने लगे।
___एक बार धरणेन्द्र भगवान के दर्शनों के लिए आया। नमि-विनमि की आकांक्षा जानकर उसने कहा कि वे भरत के पास जाएं और राज्य की याचना करें। उन्होंने उत्तर दिया-वे भरत से राज्य नहीं मागेंगे। मांगेंगे तो भगवान से ही मांगेंगे। अन्यथा प्रभु के चरणों की सेवा में ही जीवन अर्पित कर देंगे। उनकी दृढ़ आस्था देखकर धरणेन्द्र बहुत प्रसन्न हुआ। उसने उन दोनों को अनेक विद्याएं दी और वैताढ्य पर्वत की उत्तर तथा दक्षिण श्रेणियों पर अनेक नगर बसाकर वहां का राज्य दिया।
दिग्विजय के समय भरत तथा नमि-विनमि के मध्य घोर युद्ध हुआ। आखिर विनमि ने अपनी पुत्री सुभद्रा का विवाह भरत से कर दिया। सुभद्रा ही भरत चक्रवर्ती की स्त्री-रत्न बनीं। ___ कालान्तर में नमि-विनमि ने दीक्षा ली और निर्वाण पद पाया। इन्हीं भाइयों से जो वंश चला, वह विद्याधर वंश कहलाया। (क) नमुचि ____एक दुष्ट-चरित्र मंत्री, जो अपने बुद्धि कौशल से चक्रवर्ती सम्राट् सनत्कुमार का प्रियपात्र मंत्री बन गया था। पर शीघ्र ही उसका श्रमणद्वेष और दुष्टता चक्रवर्ती के समक्ष प्रकट हो गई। चक्रवर्ती ने उसे धिक्कारते हुए नगर-निर्वासन दे दिया। (दखिए-ब्रह्मदत्त) (ख) नमुचि
__ जैन श्रमणों का विरोधी एक अमात्य, जिसे अन्ततः जैन मुनियों की महिमा के समक्ष नतमस्तकता स्वीकारनी पड़ी। (देखिए- महापद्म चक्रवर्ती)
_ -त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र, पर्व 7 ' नयनंदी (आचार्य) ___दिगम्बर परम्परा के एक विश्रुत विद्वान जैन आचार्य। वे नंदी संघ के आचार्य थे और उनके गुरु का नाम आचार्य माणिक्यनंदी था।
'सुदंसण चरिउ' अपभ्रंश भाषा में रचित आचार्य नयनंदी का एक उत्कृष्ट काव्य ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में सुदर्शन श्रेष्ठी का चरित्र वर्णित है। 'सयदविहिविहाण' नयनंदी की एक अन्य प्रतिष्ठित रचना है। आचार्य नयनंदी वी.नि. की 16वीं शती के आचार्य थे।
-सुदंसण चरिउ नयसार
जम्बूद्वीप के पश्चिम महाविदेह में स्थित महावप्र विजय की जयंती नामक नगरी के राजा शत्रुमर्दन का विश्वस्त सेवक और पृथ्वी प्रतिष्ठानपुर गांव का मुखिया। उसका यह नियम था कि वह अतिथि को भोजन कराके ही स्वयं भोजन ग्रहण करता था। एक बार जब वह राजाज्ञा से वन में भवन निर्माण के उपयोग में ... जैन चरित्र कोश ...
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