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और उनकी रानी का नाम विजया था। विजया ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम रणसिंह रखा गया। विजयसेन राजा की एक अन्य रानी अजया ने षड्यंत्रपूर्वक नवजात राजकुमार का अपहरण करवा दिया। पुत्र विरह से विजयसेन और विजया विरक्त हो गए। दीक्षा धारण कर विजयसेन ही 'धर्मदासगणि' नाम से जाने गए ।
राजकुमार रणसिंह का पालन-पोषण एक कृषक परिवार में हुआ। युवावस्था में उसने अपने शौर्य के बल पर अपना राज्य प्राप्त कर लिया । परन्तु धर्मशिक्षा के अभाव के कारण वह प्रजा पर अन्याय करने लगा। धर्मदासगणि महत्तर इस तथ्य से परिचित हुए तो उन्होंने मुनि जिनदास गणि को स्वरचित 'उपदेशमाला' नामक ग्रन्थ कण्ठस्थ करा उन्हें रणसिंह को उपदेश देने भेजा। मुनि जिनदास ने वैसा ही किया और उपदेश -माला के प्रवचन सुनकर राजा रणसिंह सम्यक्त्वधारी श्रावक बन गया। कालान्तर में वह आचार्य मुनिचन्द्र के पास दीक्षित भी हुआ।
धर्मदासगण महत्तर वी. नि. की ग्यारहवीं सदी के विद्वान मुनिराज थे ।
धर्मनाथ (तीर्थंकर)
प्रवहमान अवसर्पिणी के चौबीस तीर्थंकरों में से पन्द्रहवें तीर्थंकर । रत्नपुर के महाराज भानु की भार्या सुव्रता के आत्मज । चौदह महास्वप्न देखकर माता सुव्रता ने गर्भ धारण किया। उचित समय पर माघ शुक्ला तृतीया को भगवान का जन्म हुआ। युवा होने पर धर्मनाथ का अनेक राजकन्याओं के साथ पाणिग्रहण सम्पन्न पांच वर्षों तक उन्होंने राज्य किया । वर्षीदान देकर माघ शुक्ल त्रयोदशी के दिन धर्मनाथ दीक्षित हुए। मात्र दो वर्ष छद्मस्थ अवस्था में रहने के पश्चात् प्रभु को केवलज्ञान प्राप्त हो गया। तब प्रभु ने धर्मतीर्थ की स्थापना की और लाखों भव्य जीवों के लिए कल्याण का द्वार बने । कुल दस लाख वर्ष का आयुष्य पूर्ण कर ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी के दिन प्रभु निर्वाण को उपलब्ध हो गए।
-त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र 4/8
धर्मपाल
एक परोपकारी और करुणावान युवक । धर्मपाल पशु-पक्षियों की भाषा समझता था । वह विक्रमनगर का रहने वाला था। एक बार राजा ने उसे अपने आदेश का उल्लंघनकर्त्ता घोषित कर देश- निर्वासन का दण्ड दे दिया। धर्मपाल वन मार्ग से जा रहा था। सहसा उसके कानों में यह स्वर पड़ा, कौन मेरी प्रजा को कुचल रहा है। धर्मपाल ने तत्क्षण इस स्वर को पहचान लिया। यह स्वर चींटियों की स्वामिनी चींटी रानी का था । धर्मपाल ने झुककर चींटी रानी से क्षमा मांगी। धर्मपाल के इस विनीत व्यवहार से चींटी रानी अतीव प्रसन्न हुई और बोली कि उसे जब भी उसके सहयोग की आवश्यकता पड़े, वह उसे स्मरण कर ले, वह अवश्य ही उपस्थित होकर उसका सहयोग करेगी। धर्मपाल आगे बढ़ा तो उसने एक बहेलिए के पाश से एक सुन्दर चिड़िया को मुक्त कराया । धर्मपाल की परोपकारी - वृत्ति देखकर चिड़िया ने उससे कहा कि जब भी उसे उसके सहयोग की आवश्यकता पड़े, वह उसे अवश्य स्मरण करे ।
धर्मपाल आगे बढ़ा। उसने झरने के जल में डूबती एक मधुमक्खी के प्राणों की रक्षा की। मधुमक्खी ने भी उसे समय पर सहयोग का वचन दिया ।
धर्मपाल एक नगर में पहुंचा। वह देखकर दंग रह गया कि उस नगर के सभी लोग पत्थर की प्रतिमा बने थे। जब तक वह किसी निष्कर्ष पर पहुंचता, उसे एक वृद्ध व्यक्ति आता दिखाई दिया । वृद्ध व्यक्ति • जैन चरित्र कोश •••
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