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पुत्र की ऐसी सोच सुनकर राजा क्रोध से कांपने लगा। सेनापति को आदेश देकर नंदीवर्धन को बन्दी बनवाकर अपने समक्ष बुलाया और उसकी करतूत सबको बताई। राजा के आदेश पर उसे तपाकर लाल किए हुए लौह सिंहासन पर यह कहते हुए बैठाया कि उसे सिंहासन पर बैठने की बहुत शीघ्रता है। उसे तपाए हुए हार और मुकुट पहनाए गए। तांबे, लोहे और शीशे को गर्म कर उस पर उंडेला गया। उसके अंग भंग किए गए। अत्यन्त पीड़ा भोगता हुआ नंदीवर्धन मरकर प्रथम नरक में गया। लम्बे समय तक संसार में भ्रमण करने के पश्चात् वह सिद्ध होगा।
-विपाक सूत्र नंदीषेण कुमार
मगधेश श्रेणिक के पुत्र । एक बार भगवान महावीर राजगृह नगर में पधारे। कुमार नंदीषेण ने भगवान के दर्शन किए। प्रवचन सुना। उनका मन वैराग्य से पूर्ण हो गया। उन्होंने दीक्षित होने का संकल्प कर लिया। वे दीक्षा लेने के लिए भगवान के समक्ष उपस्थित हुए। उस समय भविष्यवाणी हुई-नंदीषण ! तुम अभी दीक्षा मत लो! तुम्हारे भोगावली कर्म अभी शेष हैं! ___ नंदीषण ने भविष्यवाणी सुनी। पर उनका संकल्प अस्थिर नहीं हुआ। उन्होंने कहा-मैं कठोर तप के द्वारा भोगावली कर्मों को नष्ट कर दूंगा। उच्च भावों के साथ नंदीषेण ने संयम ग्रहण कर लिया। उन्होंने कठोर तप किया। उत्कृष्ट संयम को जीया। इससे उन्हें अनेक सिद्धियां प्राप्त हो गईं।
किसी समय नंदीषेण भिक्षा के लिए गए। संयोग से एक वेश्या के घर चले गए। भिक्षा का योग पूछा। गणिका बड़ी चतुर थी। उसने कहा-पास में कुछ है तो यहां योग ही योग है। भूखे नंगे हो तो यहां कुछ नहीं है। नंदीषेण राजकुमार से मुनि बने थे। उनका मुनि जीवन भी असाधारण था। उन्होंने सोचा-यह मुझे भूखा नंगा समझ रही है। इसे अपना परिचय देना आवश्यक है। ऐसा सोचकर उन्होंने ऋद्धि बल से धन का ढेर लगा दिया। ___ गणिका ने विस्फारित नेत्रों से देखा। मुनि के चरण पकड़ लिए। पासा पलटकर उसने अपने वचन और व्यवहार में मिश्री घोलकर कहा-मैं व्यर्थ का धन नहीं लूंगी। मेरे साथ रहो तो मैं इसे ग्रहण कर सकती हूं।
नंदीषेण का मन गणिका के आमंत्रण में बंध गया। वे साध जीवन छोडकर वहीं रुक गए। मन की ग्लानि के निवारण के लिए उन्होंने प्रतिज्ञा कर ली कि वे प्रतिदिन दस लोगों को प्रतिबोधित करके अन्नजल ग्रहण करेंगे। काफी समय तक वे अपनी प्रतिज्ञा का पालन करते रहे। एक दिन नौ व्यक्ति तो प्रतिबोधित हो गए। दसवां व्यक्ति एक स्वर्णकार था, जो तर्क पर तर्क कर रहा था। दोपहर ढलने लगी। गणिका ने नंदीषेण के पास कई आमंत्रण भेजे कि वह भोजन कर ले पर नंदीषेण नहीं गए। गणिका ने स्वयं आकर नंदीषेण से भोजन करने के लिए कहा। नंदीषेण ने कहा कि अभी दसवां व्यक्ति शेष है। ___ गणिका ने कहा-दसवें आप स्वयं बन जाइए पर भोजन तो कर लीजिए! सुनकर नंदीषेण के हृदय पर एक चोट लगी। वे प्रबुद्ध बन गए। बोले-ठीक है। आज दसवां मैं स्वयं बनता हूं। कहकर वे उठ खड़े हुए
और सीधे महावीर के समवशरण में पहुंच गए। भूल के लिए प्रायश्चित्त किया। पुनर्दीक्षित होकर उग्र तप में लीन हो गए। आयु पूर्ण कर देव बने। च्यव कर सिद्ध होंगे। नंदीषेण मुनि
करोड़ों वर्ष पूर्व हुए नंदीषेण मुनि एक सेवाव्रती मुनि के रूप में आज भी स्मरण किए जाते हैं। वे सेवा के प्रतिमान पुरुष थे। ... जैन चरित्र कोश ...
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