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को देखा। उसके नारकीय जीवन को पुनः पुनः देखने पर गौतम स्वामी के हृदय में उसके अतीत- अनागत के बारे में जानने की जिज्ञासा वर्धमान हो गई।
भगवान महावीर के चरणों में पहुंचकर और उन्हें वन्दन कर गौतम स्वामी ने उस रुग्ण पुरुष की संपूर्ण दशा भगवान को कही और पूछा, प्रभु ! उस रुग्ण पुरुष ने ऐसे कौन-से अशुभ कर्म किए जिनके फलस्वरूप वह ऐसे दारुण दुख भोग रहा है ?
भगवान महावीर ने उम्बरदत्त की पूर्वभव, इहभव और आगामी भवों की पूरी कथा कही । भगवान ने फरमाया - गौतम ! विजयपुर नाम का एक नगर था। वहां पर कनकरथ नामक राजा राज्य करता था । उसी नगर में धन्वन्तरी नाम का एक वैद्य रहता था । उस वैद्य की नगर में बड़ी मान्यता थी। नगर नरेश भी उसका सम्मान करता था । धनवन्तरी के पास चिकित्सा के लिए सैकड़ों लोग प्रतिदिन आते । धनवन्तरी रोगियों को ऐसे उपचार बताता, जिनसे प्रचंड हिंसा होती । वह स्वयं भी मांसभोजी था और रोगियों को भी विभिन्न जलचरों, स्थलचरों और खेचरों के मांस खाने का निरन्तर उपदेश दिया करता था। इस अनार्य चिकित्सा पद्धति से धनवन्तरी वैद्य ने अतिशय दुःसह कर्मों का संचय किया। बत्तीस सौ वर्षों की आयु का उपभोग करके वह धनवन्तरी वैद्य कालमास में काल कर छठी नरक में गया ।
बाईस सागरोपम तक नरक की भीषण यातनाएं झेलकर धनवन्तरी वैद्य का जीव पाटलिखंड में सागरदत्त की भार्या गंगादत्ता की कुक्षी से पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ, जहां उसका नाम उम्बरदत्त रखा गया। यहां उसके माता-पिता का क्रमशः निधन हुआ और उसे घर से निकाल दिया गया ।
यहां से यह उम्बरदत्त बहत्तर वर्ष की आयु में कालधर्म को प्राप्त होकर प्रथम नरक में जाएगा। वहां से पृथ्वीकाय आदि स्थावरों में असंख्यात बार जन्म-मरण करेगा और क्रमशः सातों ही नरकों में दारुण यातनाओं का अनुभव करेगा।
असंख्यात काल व्यतीत होने पर उम्बरदत्त का जीव हस्तिनापुर नगर में कुर्कुट योनि में उत्पन्न होगा । वहां गोष्ठिकों द्वारा मार दिए जाने पर उसी नगरी में एक श्रेष्ठिकुल में जन्म लेगा, जहां उसे श्रमण स्थविरों सत्संग का पुण्ययोग प्राप्त होगा। वहां से उसकी विकास यात्रा का प्रारंभ होगा और क्रम से महाविदेह क्षेत्र में संयम की आराधना द्वारा वह मोक्ष में जाएगा।
भगवान महावीर के श्रीमुख से रोगाक्रान्त पुरुष की आद्योपान्त जीवन यात्रा का वर्णन सुनकर गौतम स्वामी की जिज्ञासा को समाधान का शीतल जल प्राप्त हो गया। वे तप-संयम से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे । - विपाक सूत्र, प्र.श्रु., अ. 7
उग्रसेन
उग्रसेन मथुरा के एक धर्मात्मा राजा थे । पुण्य के उदय से उन्हें जहां अतिमुक्त कुमार जैसा पुण्यवान् और धर्मात्मा पुत्र प्राप्त हुआ, वहीं पाप के उदय से कंस जैसा दुराचारी और अत्याचारी पुत्र भी प्राप्त हुआ । कंस ने उनको पिंजरे में डाल दिया था ।
त उग्रसेन जी की पुत्री सत्यभामा का विवाह श्रीकृष्ण के साथ कंस की मृत्यु के पश्चात् हुआ था।
- जैन महाभारत
उज्जुमइ
आचार्य संभूतविजय के एक शिष्य ।
*** जैन चरित्र कोश -
- कल्पसूत्र स्थविरावली → 67