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एक बार राजा शान्तन उसी वन में शिकार के लिए आया तो गांगेय ने उसका मार्ग रोक लिया और उसे प्राणियों के शिकार के विरुद्ध चेतावनी दी। शान्तनु को शासक और शक्ति-सम्पन्न होने का दंभ था। उसने गांगेय को युद्ध के लिए ललकारा । क्षण-भर में ही गांगेय ने शान्तनु के धनुष की प्रत्यंचा काट डाली। शान्तनु का आत्मभ्रम हवा हो गया। तब गंगा ने वहां उपस्थित होकर पिता-पुत्र को एक-दूसरे का परिचय दिया।
शान्तनु गांगेय कुमार को हस्तिनापुर ले गया। कालान्तर में धीवर की शर्त और पितृ-प्रसन्नता के लिए गांगेय कुमार ने राजसिंहासन पर न बैठने और आजीवन ब्रह्मचारी रहने की भीषण प्रतिज्ञा की, जिसके कारण उन्हें महान सुयश प्राप्त हुआ और उन्हे लोक में 'भीष्म' उपनाम से पुकारा जाने लगा।
महाभारत के युद्ध की परिसमाप्ति तक भीष्म कुरु राज्य और कुरु परिवार के मेरुदण्ड बने रहे। उनके प्रयास से ही विचित्रवीर्य (सत्यवती-पुत्र) का विवाह काशीराज की तीन पुत्रियों-अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका से हुआ। उन तीनों से क्रमशः धृतराष्ट्र, पाण्डु और विदुर उत्पन्न हुए।
कालान्तर में सिंहासन-संघर्ष के कई पृष्ठ उघड़े। अपनी बुद्धि और प्रभाव से भीष्म संघर्षों को समाधान देते रहे। पौत्रपरिवार तक पहुंचते-पहुंचते भीष्म वृद्ध हो गए थे और दुर्योधन आदि कुमारों ने पितृ-मोह को ढाल बनाकर उनके आदेशों की गरिमा को कम कर दिया था। हस्तिनापुर के सिंहासन की सुरक्षा के वचन में बंधे भीष्म को कई निर्णायक अवसरों पर मौन के विष का चूंट भी पीना पड़ा। वचनबद्धता के कारण ही उन्होंने दुर्योधन के अन्याय पक्ष का सेनापतित्व भी वहन किया। अत्यन्त वृद्धावस्था में भी उनके शौर्य के समक्ष कोई टिक नहीं सकता था। आखिर शिखण्डी को सामने कर अर्जुन ने पितामह भीष्म पर बाण बरसाए। क्लीव को सामने देखकर भीष्म ने युद्ध बन्द कर दिया। वैदिक महाभारत के अनुसार अर्जुन ने भीष्म को बाणों से बांधकर धराशायी कर दिया। जैन महाभारत के उल्लेख के अनुसार शिखण्डी को सामने देखकर भीष्म ने शस्त्र त्याग दिए। अर्जुन ने उनको घायल कर दिया। भीष्म को युद्ध से विमुख देख दोनों पक्षों के योद्धा शान्त हो गए। भीष्म ने दुर्योधन को युद्ध को रोक देने की शिक्षा दी। दुर्योधन की अस्वीकृति पर भीष्म ने रणांगण छोड़ दिया। उनके मित्रदेव ने उनके लिए मुनिवेश प्रस्तुत किया, जिसे धारण कर वे आत्मसाधना में लीन हो गए। काफी समय तक विशुद्ध चारित्र की आराधना कर गांगेय अणगार ब्रह्म देवलोक में गए। अनुक्रम से वे सिद्धि प्राप्त करेंगे। (देखिए-शान्तनु और गंगा)
-जैन महाभारत (क) गांधारी
बल नामक चाण्डाल की पत्नी और हरिकेशबल मुनि की जननी। (देखिए-हरिकेशी मुनि) (ख) गांधारी __वासुदेव श्रीकृष्ण की एक रानी। भगवान अरिष्टनेमि के प्रवचन से प्रतिबुद्ध बन गांधारी प्रव्रजित हुई और उसने सिद्ध पद प्राप्त किया।
-अन्तगडसूत्र वर्ग 5, अध्ययन 3 (ग) गांधारी धृतराष्ट्र की रानी, दुर्योधन की माता। एक पतिव्रता सन्नारी।
-जैन महाभारत गागली
पृष्ठचम्पा नगरी का राजा और शाल-महाशाल का भानजा। वह इन्द्रभूति गौतम से प्रतिबुद्ध बन दीक्षित हुआ और अपने उच्च भावों के परिणामस्वरूप प्रभु की परिषद् में पहुंचने से पूर्व ही केवली बन गया। उसके केवली होने की सूचना स्वयं भगवान महावीर ने इन्द्रभूति गौतम को दी थी। ... 142 .
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