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कालान्तर में त्रिपृष्ठ वासुदेव का जीव ही अनेक शुभाशुभ गतियों में भ्रमण करता हुआ भगवान महावीर के रूप में उत्पन्न हुआ। शैयापालक भी जन्म-मरण करता हुआ ग्वाले के रूप में जन्मा । भगवान महावीर को देखते ही ग्वाले के पुराने वैर के संस्कार जाग उठे। उसने भगवान के कानों में कीलें ठोंककर अपने वैर का हिसाब बराबर किया ।
त्रिपृष्ठ के अग्रज का नाम अचल था । अचल बलदेव थे ।
त्रिपृष्ठ चौरासी लाख वर्ष का आयुष्य भोगकर सातवीं नरक का अधिकारी बना ।
त्रिभुवनपाल
श्रीपाल का ज्येष्ठ पुत्र । (देखिए - श्रीपाल )
त्रिभुवनस्वयंभू (कवि)
- त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र, पर्व 4
ईसा की नवम् शती के एक प्रतिभाशाली जैन कवि ।
कविवर्य त्रिभुवनस्वयंभू कविराज स्वयंभूदेव के पुत्र थे । कवित्व में उनका अप्रतिहत प्रवेश था। उन्होंने पितृ रचित पउमचरिउ, रिट्ठनेमिचरिउ आदि प्रसिद्ध ग्रन्थों को परिष्कृत और पूर्ण किया था। कविराज चक्रवर्ती उनका विरुद था । - तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा
त्रैलोक्यसुंदरी
चम्पानगरी के महाराज सुरसुंदर की इकलौती और बुद्धिमती पुत्री । ( देखिए- मंगलकलश)
••• जैन चरित्र कोश
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