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उसने एक विशाल और भव्य कुटाकारशाला बनवाई। फिर किसी प्रसंग विशेष पर उन चार सौ निन्यानवे पत्नी-माताओं को आमंत्रित किया और उनको उस कूटाकारशाला में ठहराया। उनके सुन्दर आहार-विहार
और मनोरंजन की व्यवस्था की। रात्रि में जब वे महिलाएं विश्राम कर रही थीं, तब सिंहसेन राजा ने अपने गुप्त सैनिकों से कूटाकारशाला में आग लगवा दी। चार सौ निन्यानवे महिलाएं सिंहसेन के कूट का शिकार बन गईं। भयंकर चीत्कार करते हुए उन्होंने प्राण छोड़े।
इससे सिंहसेन राजा ने दुःसह कर्मों का निकाचित बन्ध किया। कालमास में काल कर वह छठी नरक का अतिथि बना। 22 सागरोपम तक नरक के दारुण दुखों को भोगने के पश्चात् सिंहसेन का जीव रोहितक नगर के दत्त गाथापति की पत्नी कृष्णश्री के उदर से पुत्री रूप में उत्पन्न हुआ। वहां उसका नाम देवदत्ता रखा गया। युवावस्था में देवदत्ता का रूप लावण्य उच्च कोटि का हुआ। उसका विवाह रोहितक नगर के युवराज पुष्यनन्दी के साथ सम्पन्न हुआ। पिता की मृत्यु के पश्चात् पुष्यनन्दी राजपद पर आसीन हुआ और न्याय-नीति से प्रजा का पालन करने लगा।
राजा पुष्यनन्दी मातृभक्त था। अपनी माता श्रीदेवी की सेवा-शुश्रूषा वह अपने हाथों से करता था। वह माता को स्वयं नहलाता, उसके अंगों पर विभिन्न तैलों का मर्दन करता, अपने हाथों से उसे भोजन करवाता। उसका काफी समय मातृ-सेवा में ही बीत जाता।
देवदत्ता एक कामाभिलाषिनी नारी थी। वह चाहती थी कि सिंहसेन उसे अधिक से अधिक समय दे। पर मातृसेवा में संलग्न सिंहसेन देवदत्ता को उसके मनोनुकूल समय नहीं दे पाता। इससे देवदत्ता मन ही मन खिन्न रहती। इसके लिए वह अपनी सास श्रीदेवी को उत्तरदायी मानती थी। अपनी सास को वह अपने सुख में बाधा मानने लगी। उसने उसकी हत्या का निश्चय कर लिया।
एक दिन जब श्रीदेवी सुख-शैया पर सो रही थी तो अवसर पाकर देवदत्ता ने उसके गुह्य स्थान में तप्त लौहदण्ड डाल कर उसकी हत्या कर दी। देवदत्ता की इस क्रूरता पर राजा सिंहसेन आगबबूला हो गया। उसन देवदत्ता को अवकोटक बन्धनों से बंधवा कर शूली का आदेश दे दिया।
मरकर देवदत्ता नरक में गई। वह असंख्यात काल तक विभिन्न दुखदायी योनियों में जन्म-मरण करेगी। कालान्तर में गंगपुर नगर में वह एक श्रेष्ठीकुल में पुत्र रूप में जन्म लेगी, जहां उसे श्रमण स्थविरों के सान्निध्य से सद्धर्म की प्राप्ति होगी। वहां से उसके आध्यात्मिक विकास का क्रम प्रारंभ होगा। तदनन्तर महाविदेह क्षेत्र से वह सिद्ध होगी।
यह समग्र कथा वृत्तान्त भगवान महावीर ने अपने शिष्य गौतम स्वामी को उनके एक प्रश्न के उत्तर में सुनाया था। देवदत्ता को अवकोटक बन्धनों से बांधकर जब वध स्थल पर ले जाया जा रहा था, तब भिक्षार्थ भ्रमण करते हुए गौतम स्वामी ने वह दृश्य देखा था। गौतम स्वामी ने भगवान से देवदत्ता के जीवन वृत्तान्त को सुनाने की प्रार्थना की। उत्तर में भगवान ने उक्त कथानक सुनाया था। -विपाक सूत्र, प्र.श्रु,अ. 9 (क) देवनंदी (आचार्य) ___एक विद्वान जैन आचार्य। आचार्य देवनंदी वी.नि. की ग्यारहवीं शताब्दी में हुए। वे दिगम्बर परम्परा के आचार्य थे।
__ आचार्य देवनंदी का जन्म कर्नाटक में हुआ था। उनकी माता का नाम श्रीदेवी और पिता का नाम माधव भट्ट था। बाल्यावस्था में ही देवनंदी को संसार से वैराग्य हो गया और वे मुनि बन गए। अध्ययन-रुचि .0252 -
- जैन चरित्र कोश ....