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(ख) धनपाल
धारानगरी का एक ब्राह्मण विद्वान, राजमान्य कवि और अनन्य श्रमणोपासक । (देखिए -शोभनाचार्य)
- मथुरा के शिलालेख
(ग) धनपाल (कवि )
वि. की दसवीं शती के एक ज्येष्ठ-श्रेष्ठ जैन कवि ।
धनपाल के पिता का नाम माएसर और माता का नाम धनश्री था। उनका जन्म धक्कड़ वंश (पश्चिम भारत की एक वैश्यजाति) में हुआ था ।
कविवर धनपाल की एक रचना उपलब्ध है। रचना का नाम है - भविसयत्तकहा । इस ग्रन्थ में जैन पौराणिक चरित्र 'भविष्यदत्त' के चरित्र का सांगोपांग वर्णन हुआ है । ग्रन्थ में कवि की काव्य प्रतिभा के दर्शन होते हैं। भाव, भाषा, अलंकरण और छन्दों का सुन्दर समन्वय ग्रन्थ को महाकाव्य की कोटि प्रदान करता है । - तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा
(घ) धनपाल राजा
कौशाम्बी नगरी का एक उदार हृदय नरेश। एक बार उसने वैश्रमणभद्र नामक एक मासोपवासी मुनि को उत्कृष्ट भावों से आहार का दान दिया। देवताओं ने पंचदिव्यों की वर्षा कर राजा के दान की प्रशस्ति की। सुपात्र दान से महाराज धनपाल ने उत्कृष्ट पुण्य का अर्जन किया। जन्मान्तर में वे विजयपुर नरेश वासवदत्त के यहां पुत्र रूप में जन्मे। वहां उनका नाम सुवासव रखा गया। सुवासव ने भगवान महावीर के चरणों में आर्हती प्रव्रज्या धारण कर परम पद का अधिकार पाया। (देखिए - सुवासव) - विपाकसूत्र, द्वि.श्रु., अ. 4
(क) धनमित्र
स्वस्तिक नगर के धर्मात्मा सेठ धनद का इकलौता पुत्र, जो पूर्वजन्म के कर्मों के कारण बचपन से ही दुःसंगति का शिकार बन गया और यौवनावस्था तक पहुंचते-पहुंचते उसके जीवन में सातों कुव्यसन प्रवेश कर गए। पिता-माता, परिजनों और पुरजनों ने धनमित्र को अनेक-अनेक बार समझाया पर वह नहीं समझा। यों तो सात कुव्यसन उसके अभिन्न शौक थे, पर चोरी करने में उसे विशेष आनंद प्राप्त होता था। एक बार वह सेंध लगाते राजपुरुषों द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। उसे राजा के समक्ष उपस्थित किया गया । राजा ने उसे पहचान लिया कि वह राजमान्य श्रेष्ठी धनद का पुत्र है। राजा ने धनद को बुलाया और उसे उपालंभ- मात्र देकर उसके पुत्र को मुक्त कर दिया। इससे धनद लज्जा से भर गया और उसने अपने पुत्र से सम्बन्ध-विच्छेद कर उसे अपने घर से निकाल दिया ।
अपयश सहकर भी धनमित्र का हृदय परिवर्तित नहीं हुआ। उसने एक धूर्त योगी से एक ऐसा अंजन प्राप्त कर लिया, जिसे आंखों में आंजने पर व्यक्ति अदृश्य हो सकता था । अदृश्य-कारक अंजन पाकर धनमित्र पूर्णतः स्वच्छन्द और उन्मादी बन गया। उसकी नित्य की चोरियों से नगर में आतंक छा गया। राजा और उसकी सेना पूरी शक्ति और कुशलता का उपयोग करके भी धनमित्र को पकड़ नहीं पाई। क्योंकि धनमित्र अदृश्य होकर चोरियां करता था । आखिर राजा ने घोषणा कराई कि जो कोई व्यक्ति अदृश्य चोर को पकड़ेगा, उसे राजकीय- कोष से सौ करोड़ स्वर्णमुद्राएं पुरस्कार में दी जाएंगी। एक चतुर गणिका ने चोर को पकड़ने का बीड़ा उठाया । गणिका ने चातुर्य दिखाते हुए धनमित्र को गिरफ्तार करवा दिया। न्याया• जैन चरित्र कोश •••
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