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चंडप्रद्योत (राजा) ___ भगवान महावीरकालीन उज्जयिनी नगरी का सम्राट् । कहने को तो वह एक जैन राजा था पर जैनत्व का कोई भी गुण उसके जीवन में नहीं था। कई बार वह भगवान के प्रवचनों में भी सम्मिलित हुआ, पर प्रस्तर पर पड़ी बूंद की तरह उसका हृदय अमृत-प्रवचनों से सरसब्ज न बन सका। वह जैन कुल से था इसीलिए महाराज चेटक ने उससे अपनी पुत्री शिवा देवी का लग्न किया था। शिवा देवी परम पतिपरायण सन्नारी थी। पर चंडप्रद्योत का स्वभाव सर्वथा विपरीत था। वह विशाल सैन्य का स्वामी और शक्ति सम्पन्न तो था पर अपनी कामुकता के कारण उसे जीवन में पुनः पुनः प्रताड़ना और पराजय का मुंह देखना पड़ा। उसकी कामुकता उस समय लज्जाहीनता की पराकाष्ठा पर जा पहुंची, जब उसने अपनी साली मृगावती को हथियाने के लिए कौशाम्बी पर आक्रमण कर दिया। मृगावती के पति और कौशाम्बी नरेश महाराज शतानीक इस अकस्मात् आक्रमण से इतने विचलित और त्रस्त हो गए कि उन्हें अतिसार हो गया और उनका देहान्त हो गया। साढू का देहान्त भी चंडप्रद्योत का हृदय न पिघला सका। ऐसे में मृगावती को अपना बना लेने का उसका उत्साह शतगुणित बन गया। मृगावती चंडप्रद्योत की मानसिकता और कामक्रूरता को जानती थी। उसने बुद्धिमत्ता से काम लेते हुए, प्रथम तो अपनी नगरी के द्वार बन्द करवा दिए, फिर चंडप्रद्योत के पास कूटनीतिक सन्देश भिजवाया कि मृगावती चंडप्रद्योत को अपनाने के लिए तैयार है पर वह उसकी प्रेम-परीक्षा चाहती है। इस रूप में कि वह उज्जयिनी के किले को तुड़वाकर उन ईंटों से कौशाम्बी के किले का परकोटा चिनवाए।
___ कामान्ध विवेकान्ध भी होता है। चंडप्रद्योत प्रेम-परीक्षा में सफल होने के लिए उतावला बन गया। उसने अपने अनुचरों को आदेश दे दिया कि जैसा उनकी नई महारानी चाहती है, वैसा ही किया जाए।
मृगावती ने यह चाल इसलिए चली थी कि इस कार्य में षड्मासाधिक का समय तो लग ही जाएगा और तब तक वह अपनी रक्षा का कोई न कोई मार्ग तलाश ही लेगी। हुआ भी वैसा ही। उधर उसी अवधि में भगवान महावीर कौशाम्बी नगरी के बाहर उद्यान में पधार गए। मृगावती भगवान के दर्शनों के लिए गई। उसने दीक्षा लेने का संकल्प कर लिया। अपने अल्पायुष्क पुत्र उदयन को चंडप्रद्योत की गोद में सौंपकर वह दीक्षित हो गई। चंडप्रद्योत देखता ही रह गया।
__ ऐसे ही एक बार चंडप्रद्योत ने मगधाधिप महाराज श्रेणिक को संदेश भिजवाया कि वह सिंचानक हाथी और चेलना रानी उसके पास भेज दे। ईंट का जवाब पत्थर से देते हुए महाराज श्रेणिक ने उसे कहलवाया कि वह अपना अनलगिरि हाथी और अपनी रानी को राजगृह भिजवा दे। श्रेणिक के क्लिष्ट उत्तर से विदग्ध बनकर और अपनी आज्ञा की अवहेलना देखकर चंडप्रद्योत क्रोधित हो गया और उसने अकस्मात् ही राजगृह को आ घेरा। श्रेणिक उसके प्रतिरोध की तैयारी करने लगे तो अभय कुमार ने उनसे वैसा न करने के लिए कहा। तब अभयकुमार ने एक चाल चली। उसने चंडप्रद्योत के सामन्तों के शिविरों के आस-पास गुप्त रूप से स्वर्णमुद्राओं की थैलियां गड़वा दी और रात में चंडप्रद्योत से मिलने पहुंचा। बात बनाते हुए और चेहरे के हाव-भाव बदलते हुए उसने चंडप्रद्योत को यह विश्वास दिला दिया कि महाराज श्रेणिक ने स्वर्णमुद्राओं का लोभ देकर उसके सामन्तों को अपने पक्ष में कर लिया है। अभय ने गडे हए धन को भी चंडप्रद्योत को दिखाया। चंडप्रद्योत को बात जम गई। अर्धरात्रि में ही वह अपने अनलगिरि हाथी पर चढ़कर उज्जयिनी भाग गया। प्रभात में अपने राजा के पलायन की बात को जानकर सेना भी उज्जयिनी लौट गई।
चप्रद्योत की कामुक वृत्ति ने उसे कदम-कदम पर अपमानित कराया। एक बार सिन्धु सौवीर देश के ... जैन चरित्र कोश ...
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