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धन्ना सेठ के घर चोरी की जाएगी और उसके धन के साथ-साथ उसकी पुत्री सुषमा का अपहरण भी किया जाएगा। चोरी में प्राप्त समस्त धन तुम्हारा होगा और अकेली सुषमा मेरी होगी। तय योजनानुसार धन्ना के घर चोरी की गई। चिलातीपुत्र ने सोई हुई सुषमा को कन्धे पर उठा लिया। पर उसी समय धन्ना सेठ की आंख खुल गई। चोर भागे। धन्ना ने अपने पांचों पुत्रों और कुछ राज्य कर्मचारियों के साथ चोरों का पीछा किया। कुछ ही दूर जाकर चोरों को लगा कि वे पकड़ लिए जाएंगे। धन की गठड़ियां डालकर वे भाग गए। आरक्षियों ने धन बटोरा और लौट गए। पर धन्ना और उनके पुत्रों के लिए तो सुषमा को प्राप्त करना लक्ष्य था। वे पूरे वेग से चिलातीपुत्र के पीछे भागते रहे। जंगल में पहुंचकर चिलातीपुत्र के पांव जवाब देने लगे। सेठ और उसके पुत्र उसके निकट ही पहुंच चुके थे। ऐसे में उसने सुषमा का सर काट दिया और उसे लेकर तीव्र वेग से भागा। सुषमा का धड़ देखकर सेठ और उसके पुत्रों के हौसले पस्त हो गए। वे वहीं रुक गए।
चिलातीपुत्र भागा जा रहा था। सहसा उसे विचार आया कि यह भी कोई जीवन है ! भागते रहो, पलपल भय के साए में जीओ! तभी एक वृक्ष के नीचे ध्यानस्थ एक श्रमण पर उसकी दृष्टि पड़ी। उसने विचार किया-सच्चा जीवन तो यह है! कितनी शान्ति है! वह मुनि के पास गया। तलवार और सुषमा का सर एक
ओर रखकर उसने मुनि से शान्ति का उपाय पूछा। रक्त से सने शरीर वाले युवक को देखकर मुनि को लगा कि एक भटकी हुई आत्मा मार्ग की तलाश में है। मुनि ने उसे शान्ति का उपाय बताया- उपशम, विवेक, संवर।
__एक वृक्ष के नीचे बैठकर चिलातीपुत्र विचारमग्न हो गया। उसने शब्दों के अर्थों पर चिन्तन किया कि उपशम का अर्थ है क्रोध की अग्नि को शान्त करना। विवेक का अर्थ है परिग्रह का परित्याग और संवर का अर्थ है इन्द्रियों का निग्रह करना। ऐसा करने वाले व्यक्ति को ही शान्ति मिलती है। चिलातीपुत्र का चिन्तन गहन होता गया। उधर रक्त की गंध से आकृष्ट बनी वज्रमुखी चींटियां उसके शरीर को चूंट-चूंट कर खाने लगीं, पर उपशम का पाठ वह पढ़ चुका था। पूर्ण शान्त भाव से उसने उस पीड़ा का गरलपान किया। चींटियों ने उसका शरीर छलनी कर दिया। समभाव से प्राण त्याग कर चिलातीपुत्र देवलोक में गया।
-ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र चुलनी ___ एक दुष्टचरित्र रानी। अन्तिम चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त उसी के गर्भ से उत्पन्न हुआ था। (देखिए-ब्रह्मदत्त) चुलनीपिता श्रावक
वाराणसी नगरी का एक धन-धान्य सम्पन्न गाथापति। उपासकदशांग सूत्र में उसका चरित्र सविस्तार चित्रित हुआ है, जिसके अनुसार वह चौबीस करोड़ स्वर्णमुद्राओं तथा अस्सी हजार गौओं का स्वामी था। भगवान महावीर की वाणी सुनकर उसने श्रावक धर्म अंगीकार किया था। वह दृढ़धर्मी श्रावक था। किसी समय जब वह अपनी पौषधशाला में बैठा धर्म जागरण कर रहा था, उस समय एक मिथ्यात्वी देव ने उसकी धर्मदृढ़ता की कठोर परीक्षा ली। देव ने उसके तीन पुत्रों की हत्या कर दी और उनके रक्त से उसके शरीर को सींचा। इस पर भी वह चलित न हुआ। तदनन्तर देव ने उसकी माता भद्रा को उसके समक्ष उपस्थित किया
और उस पर प्रहार करने को तत्पर हुआ। चुलनीपिता का चित्त माता के प्रति अत्यन्त श्रद्धा और ममत्व से पूर्ण था। मां पर मृत्यु का क्षण वह देख न सका। मातृरक्षा के लिए वह शोर करता हुआ दुष्ट देव को पकड़ने लपका। देवता आकाश में उड़ गया। उसके हाथ में एक स्तंभ आया। ... जैन चरित्र कोश ...
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