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झूठ का त्याग कर दिया। यदि तुम जीवन में झूठ का त्याग करो तो मैं तुम्हारी मंजूषा लौटा सकता हूं। वणिक ने तत्क्षण झूठ का त्याग कर दिया। गज्जु ने उसकी मंजूषा उसे लौटा दी।
इस घटना से वणिक गज्जु से काफी प्रभावित हुआ। उसे विश्वास हो गया कि गज्जु जो कहता है, सत्य कहता है, और अपने कहे अनुसार वह चम्पा का राजकोष अवश्य लूटेगा। चम्पा के निकट पहुंचकर वणिक गज्जु से विदा लेकर सीधा राजा के पास पहुंचा और रात्रि में राजकोष लूटे जाने की अग्रिम सूचना राजा को दी। राजा भी सावधान हो गया। उसने राजकोष पर कड़े पहरे लगा दिए। फिर स्वयं रात्रि में वेश बदलकर घूमने लगा। एक स्थान पर उसकी गज्जु से भेंट हो गई। राजा ने उसका नाम और घूमने का प्रयोजन पूछा। गज्जु ने बता दिया कि उसका नाम गज्जु है और वह राजकोष चुराने जा रहा है। उसकी सत्यवादिता पर राजा चकित हो गया। गज्जु के पूछने पर राजा ने अपना परिचय भी एक चोर के रूप में दिया। इससे गज्जु प्रसन्न हो गया और बोला-एक से दो भले। दोनों राजमहल के निकट पहुंचे। गज्जु ने अवस्वापिनी विद्या से सभी सैनिकों को निद्राधीन कर दिया। तब उसने चोर रूपी राजा से कहा. हममें से एक अन्दर जाकर कोष चुराएगा और दूसरा बाहर खड़ा रहकर पहरा देगा। जो अन्दर जाएगा, उसे चुराए गए धन के तीन हिस्से मिलेंगे और जो बाहर खड़ा होगा, उसे चौथा भाग मिलेगा। राजा ने बाहर खड़े होना स्वीकार किया। गज्ज कोषागार में घसा और ताले तोडकर चार रत्नमंजषाएं चरा लाया। बाहर आकर उसने एक मंजषा राजा को दी और शेष तीन अपने पास रख लीं। तब उसने कहा, मित्र! मेरा कार्य पूर्ण हो चका है. अब मैं लौट रहा हूं।
राजा ने कहा, मित्र! सुबह निकट है। ऐसे में तुम कहां जाओगे? गज्जु ने कहा, नगर के बाहर शून्य देवालय में रात्रि व्यतीत कर.मैं सुबह अपने स्थान के लिए निकल जाऊंगा। गज्जु को विदा देकर राजा राजमहल पहुंचा। तब तक कोषागार के रक्षक सैनिक भी जाग चुके थे। कोष को लुटा देखकर वे राजा के पास पहुंचे। राजा ने सैनिकों को चोर का पता बताते हुए कहा, उस चोर को ससम्मान बन्दी बनाकर दरबार में उपस्थित करो! ___ प्रभात में गज्जु को दरबार में उपस्थित किया गया। राजा के पूछने पर गज्जु ने रात्रि की घटना का अक्षरशः बखान कर दिया। राजा ने कहा, राजकोष से चार रत्नमंजूषाएं चुराई गई हैं। तीन मंजूषाएं तुमने दे दी हैं, चौथी मंजूषा कहां है? गज्जु ने कहा, चौथी मंजूषा पर मेरे मित्र का अधिकार था और वह मैंने उसे दे दी है। राजा ने बनावटी रोष दर्शाते हुए कहा, तुम्हारा मित्र कहां है, उसे भी दरबार में लाया जाए!
गज्जु ने कहा, महाराज! वह तो पहले से ही दरबार में उपस्थित है। और वह स्वयं आप हैं।
गज्जु की बात सुनकर राजा गद्गद बन गया। सिंहासन से उठकर उसने गज्जु को गले से लगा लिया। उसके बाद राजा ने गज्जु की सत्यवादिता और रात्रि की घटना से सभी दरबारियों को परिचित कराया। राजा ने गज्जु को अपने दरबार में सम्मानित पद दिया और चौर्य कर्म छोड़ने के लिए कहा। गज्जु ने मित्र की बात को स्वीकार कर लिया और चोरी का त्याग कर दिया।
कालान्तर में आचार्य वरदत्तगिरी चम्पा नगरी में पधारे। गज्जु ने आचार्य श्री के सान्निध्य में दीक्षा धारण की और शुद्ध संयम की आराधना द्वारा सद्गति का अधिकार पाया। गर्गाचार्य ___एक प्रसिद्ध जैनाचार्य। उनके पांच सौ शिष्य थे। पर सभी अविनीत और उच्छृखल थे। एक बार .. 140 -
.. जैन चरित्र कोश ...