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आते देखकर सोमिल कांप उठा। भय की अधिकता से वह मूर्छित होकर गिर पड़ा और उसके प्राण निकल गए। ___श्रीकृष्ण जान गए कि इसी व्यक्ति ने उनके भाई का वध किया है। उन्होंने सोमिल के शव को चीलों-कौवों के समक्ष फिंकवा दिया और उस पृथ्वी को जल से शुद्ध करवाया।
गजसुकुमार का जीवनवृत्त क्षमा का एक अनुपम उदाहरण है। -अन्तगडसूत्र वर्ग 3, अध्ययन 8 गज्जु चोर
राजगृह नगरी के निकटवर्ती पर्वत श्रृंखला में छिपकर रहने वाला एक दुर्दान्त चोर। उसे अवस्वापिनी विद्या प्राप्त थी, जिसके बल पर वह स्वच्छन्द चोरी करता था। उसका एक सहोदर था-भज्जु । ये दोनों मिलकर चोरियां करते और चुराए हुए धन को सप्त कुव्यसनों में खो देते। ___एक बार दोनों सहोदर राजगृह नगर में चोरी करने के लिए जा रहे थे। मार्ग में स्थित गुणशील उद्यान में आचार्यवर्य वरदत्तगिरी प्रवचन फरमा रहे थे। गज्जु का मन आचार्य श्री का प्रवचन सुनने के लिए उत्सुक हुआ। भज्जु ने गज्जु को वैसा करने से रोका। गज्जु ने भज्जु को प्रवचन सुनने के लिए प्रेरित किया। पर दोनों अपने-अपने आग्रह पर दृढ़ रहे। गज्जु प्रवचन सभा में जा बैठा और भज्जु चोरी करने के लिए नगर में चला गया।
आचार्य श्री ने सत्य की महिमा का भावोत्पादक वर्णन किया। गज्जु पर प्रवचन का गहरा प्रभाव पड़ा और उसने आचार्य श्री से सत्यव्रत ग्रहण कर लिया। व्रत ग्रहण कर गज्जु गुणशील चैत्य से निकलकर राजपथ पर पहुंचा। उसने वहां चर्चा सुनी कि भज्जु चोर मारा गया है। भ्रातृ-मृत्यु से उसे गहरा आघात लगा। पर क्या करता? किसे कहता? वह अपने स्थान पर लौट गया।
कुछ दिन बाद जब उसका शोक कुछ कम हो गया तो वह चोरी करने के लिए निकला। उसने चम्पा नगरी के राजकोष को अपना लक्ष्य बनाया। वह चम्पा नगरी के पथ पर बढ़ चला। मार्ग में उसे धन्ना नामक एक वणिक मिला. जिसके पास एक रत्नमंजषा थी। वणिक सयाना था और उसने अनमान लगा लिया कि हो न हो यह चोर है। वह सावधान हो गया और उसने कई प्रयास किए कि वह गज्ज से आगे या पीछे हो जाए। पर गज्जु ने उसके सब प्रयत्न विफल कर दिए। वह वणिक के साथ ही रुकता और उसके साथ ही यात्रा शुरू करता। वणिक ने गज्जु से उसका परिचय पूछा। गज्जु ने अपना परिचय देते हुए कहा कि वह गज्जु चोर है और चम्पा का राजकोष चुराने जा रहा है। उसका परिचय सुनकर वणिक भयभीत हो गया। गज्जु को प्रसन्न करने के लिए उसने उसे भोजन कराया। गज्जु ने उसे अपना मित्र मान लिया। दोनों ने मैत्री की शपथ ली। वणिक का भय कछ कम हो गया। मार्ग में देहशंका से निपटने के लिए वणिक एक स्थान पर रुका। उसने रत्नमंजूषा गज्जु को थमाई और कहा, मित्र! इसमें विषैले जीव-जन्तु हैं, इसे खोलना मत! कहकर वह एक दिशा में चला गया।
गज्जु भी कम अनुभवी नहीं था। पर वणिक की आशंका पर उसे कष्ट हुआ। उसने मंजूषा को छिपा दिया। वणिक ने लौटकर मंजूषा मांगी तो गज्जु ने कहा, विषैले जन्तुओं से भरी उस मंजूषा को मैंने कहीं छिपा दिया है। वणिक आर्तनाद कर उठा और बोला, उसमें विषैले जन्तु नहीं हैं, उसमें तो मेरे जीवन का संचित सारा धन है। उसे मुझे लौटा दीजिए। गज्जु ने कहा, वणिक होकर भी तुम झूठ बोलते हो! तुम तो अक्सर मुनिराजों के उपदेश सुनते हो, उस पर भी झूठ बोलना नहीं छोड़ पाए, मैंने तो एक प्रवचन सुना और ... जैन चरित्र कोश ...
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