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घना (आर्या) घना नामक आर्या का जीवन परिचय इला आर्या के समान है। (देखिए-इला आया)
-ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि.श्रु., तृ.वर्ग, अध्ययन 5 घासीलाल जी महाराज (आचार्य)
एक विद्वान और आगमज्ञ आचार्य।
आपश्री का जन्म वि.सं. 1941 में मेवाड़ के बनोल ग्राम में हुआ। आपके पिता का नाम प्रभुदत्त और माता का नाम विमलाबाई था। आपकी बाल्यावस्था में ही आपके पिता का निधन हो गया। अपनी माता के मार्गदर्शन में आपने गृहदायित्व वहन किए। पर कुछ वर्षों बाद माता भी चल बसी। वैराग्य से आपका हृदय पूर्ण बन गया। वि.सं. 1958 में गोगुन्दा में आचार्य श्री जवाहर लाल जी महाराज के चरणों में आपने दीक्षा धारण कर ली।
कहते हैं कि प्रारंभ में आप स्थूल बुद्धि के थे। नवकार मंत्र को याद करने में आपको अठारह दिन लगे। बुद्धि को तीक्ष्ण करने के लिए आपने आयंबिल वर्द्धमान तप की आराधना की। तदनन्तर आपने संस्कृत, प्राकृत, पाली, मराठी, गुजराती, हिन्दी, उर्दू और फारसी आदि भाषाओं का तलस्पर्शी अध्ययन किया। आगमों का अनेक बार अध्ययन किया। आगम सर्वगम्य बन सकें, इसके लिए आपने बत्तीसों आगमों की संस्कृत, हिन्दी और गुजराती भाषा में बृहद् टीकाओं का लेखन किया। यह एक कठिन और श्रम साध्य कार्य था, जो आप जैसे दिव्य पुरुष से ही संभव था। आगम साहित्य के अतिरिक्त भी आपने आगम-आधृत पर्याप्त साहित्य का सृजन किया। ___ अपने युग के आप एक प्रभावशाली मुनिराज थे। कोल्हापुर नरेश, उदयपुर नरेश आदि कई राजा आप से प्रभावित थे।
वि.सं. 2029 में समाधि संथारे सहित अहमदाबाद नगर में आपका स्वर्गवास हुआ। घेवरिया मुनि
घेवरिया मुनि का वृत्त इस प्रकार है
राजगृह नगर में सुखदत्त नामक एक निर्धन युवक रहता था, जो श्रीपति नामक श्रमणोपासक के घर सेवावृत्ति द्वारा अपना निर्वाह करता था। उसे उतना ही वेतन मिलता था, जिससे वह रूखा-सूखा भोजन कर सके। एक दिन एक तपस्वी मुनि श्रीपति श्रेष्ठी के घर भिक्षार्थ पधारे। श्रेष्ठी के घर में घेवर बने थे। श्रेष्ठी ने मुनि को घेवर बहराया। मुनि ने श्रेष्ठी से आधा घेवर देने के लिए कहा, पर श्रेष्ठी ने आग्रह दर्शाते हुए पूरा घेवर मुनि के पात्र में बहरा दिया। ... 154 am
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