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भी विभीषण को कोई प्रतिरोध नहीं दिया। वस्तुतः यह सब कूटनीति का अंग था। गुप्त रूप से ऐसी व्यवस्था की गई थी कि विभीषण को यह विश्वास हो जाए कि दशरथ की हत्या में वह सफल हो गया है। महाराज दशरथ का एक पुतला बनाकर उनकी शैया पर लिटाया गया था। विभीषण दनदनाता हुआ अयोध्या के राजमहल में घुस आया और पुतले को दशरथ मानकर तलवार के प्रहार से उसका सर काट दिया।
साधारण वेश-भूषा में घूमते हुए दशरथ उत्तरापथ के कौतुकमंगल नगर में पहुंचे। वहां के राजा शुभमति और रानी पृथ्वीश्री की आत्मजा कैकेयी का स्वयंवर समायोजित था, जिसमें दूर देशों के अनेक राजा सम्मिलित थे। दशरथ भी दर्शकदीर्घा में जा बैठे। कैकेयी ने सभी राजाओं को अदेखा करते हए दर्शकदीर्घा मे खड़े दशरथ के गले में वरमाला डाल दी। इससे आमंत्रित राजाओं में नाराजगी फैलना स्वाभाविक था। सभी राजाओं ने योजना बनाकर दशरथ-वध का संकल्प किया। दशरथ भी कब पीठ दिखाने वाले थे! वे एक रथ पर चढ़ गए। कैकेयी अपने पति की सारथि बनी। घोर संग्राम हुआ। दशरथ ने सभी राजाओं को मार भगाया। कैकेयी की पतिभक्ति और सारथ्यकला से गद्गद दशरथ ने उसे वर मांगने को कहा। कैकेयी ने समुचित अवसर के लिए उस वर को पति के पास धरोहर रूप में रख छोड़ा।
___ कालांतर में जब दशरथ चतुर्ज्ञानी मुनि सत्यभूति का उपदेश सुनकर आर्हती दीक्षा के लिए तैयार हुए तो भरत भी पिता के अनुगामी बनने को उत्सुक हो गए। कैकेयी के लिए ये कठिन क्षण थे। वह एक साथ पति और पुत्र के वियोग को सह न सकी। उसने पति के पास धरोहर रूप में रख छोड़ा अपना वर भरत के राजतिलक के रूप में मांग लिया।
दशरथ के लिए राम और भरत में भेद न था। उन्होंने अपने वचन की रक्षा के लिए राम के स्थान पर भरत का राजतिलक करने की घोषणा कर दी। परन्तु अग्रज राम का अनन्य प्रेमी भरत भला कब इस बात को स्वीकार कर सकता था! स्थिति विचित्र और विकट बन गई। तब श्री राम ने वन का पथ चुन लिया। श्रीराम की दृष्टि में उक्त विकट स्थिति से निपटने का वही एक उपाय था। ___ श्रीराम के साथ सीता और लक्ष्मण भी वन में चले गए। इन सब के लिए लोक में कैकेयी को उत्तरदायी माना गया। पर जैनरामायण के अनुसार कैकेयी के हृदय में राम के लिए तिलमात्र भी द्वेषभाव न था। वह राम को वापस लाने के लिए वन में गई।
आखिर गहन पश्चात्ताप की ज्वालाओं में जलते हुए कैकेयी ने चौदह वर्ष बिताए। लंका विजय के पश्चात् श्रीराम अयोध्या लौटे। तब कैकेयी को सुख और संतोष हुआ। आखिर में कैकेयी प्रव्रजित हुई। निरतिचार संयम और उग्र तपश्चर्या से उसने समस्त कर्म-राशि को भस्मीभूत कर परम पद पाया।
-त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र, पर्व 7 केतुमती (आर्या) इनका समग्र परिचय कमला आर्या के समान जानना चाहिए। (देखिए-कमला आर्या)
-ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि.श्रु., वर्ग 5, अ. 18 केशरी (सामायिक) । कामपुर नगर के धनी व्यापारी संघदत्त का पुत्र और एक सदाचारी बालक। बाल्यावस्था में ही केशरी " ने मुनियों से सामायिक की महिमा को सुना और जाना था तथा प्रतिदिन एक शुद्ध सामायिक करने का अपने मन में सुदृढ़ संकल्प किया था। वह नित्य एक शुद्ध सामायिक की आराधना करता। पर जैसे-जैसे वह जैन चरित्र कोश...
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