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भद्दिलपुर की सुलसा गाथापत्नी के पास पहुंचा दिया और उसके मृत पुत्रों को देवकी के पास लाकर रख दिया। मृत बालकों को देवकी की संतान मानकर कंस उन्हें शिला पर पटकता और संतुष्ट हो जाता।
भाद्रपद कृष्ण अष्टमी की अर्धरात्रि को देवकी ने सातवीं संतान, जो एक परम तेजस्वी पुत्र था, को जन्म दिया। बालक के पुण्य प्रभाव से कारागृह रक्षक सो गए। द्वारों पर लगे ताले खुल गए। वसुदेव अपने नवजात पुत्र को गोकुल में रहने वाले अपने मित्र नन्द को दे आए। यही पुण्यवान बालक 'कृष्ण' नाम से लोक में सुख्यात हुआ। नन्द की पत्नी यशोदा ने कृष्ण का लालन-पालन किया। इसीलिए श्रीकृष्ण को नन्दलाला और यशोदानन्दन भी कहा जाता है।
गोकुल मे कृष्ण पल रहे थे। कंस ने उन्हें मरवाने के अनेक यत्न किए। पर कृष्ण के पुण्य बल के समक्ष कंस के समस्त बल कुंद पड़ गए। आखिर एक दिन श्रीकृष्ण ने कंस को उसी की राजसभा में मार डाला। अपने माता-पिता को कारागृह से मुक्त किया।
जीवयशा के मुख से कंस-वध की सूचना सुनकर प्रतिवासुदेव जरासंध क्रोधित हो उठा। उसने श्रीकृष्ण के वध का संकल्प कर लिया। समुद्रविजय आदि प्रमुख यादव श्रीकृष्ण को लेकर पश्चिम की ओर समुद्र तट पर पहुंचे। वहां पर देवताओं ने श्रीकृष्ण के लिए द्वारिका नाम की एक सुंदर नगरी बसाई। श्रीकृष्ण वहां के राजा बने। अवसर पाकर जरासंध ने द्वारिका पर आक्रमण कर दिया। श्रीकृष्ण के नेतृत्व में यादव वीरों ने जरासंध की सेना को परास्त कर दिया। श्रीकृष्ण ने जरासंध के ही सुदर्शन चक्र से उसका वध कर दिया। देवताओं ने श्रीकृष्ण का जयघोष किया और नवम् वासुदेव के रूप में उनका अभिनन्दन किया। ___द्वारिका को राजधानी बनाकर श्रीकृष्ण ने तीन खण्डों पर शासन किया। पांचों पाण्डव उनके नजदीकी मित्र थे। वैदिक परम्परानुसार श्रीकृष्ण के ही बूते पर पाण्डवों ने विशाल और अजेय कौरव सेना को परास्त किया था।
सत्यभामा, रुक्मिणी, जांबवती, गौरी आदि श्रीकृष्ण की आठ पटरानियां व सोलह हजार अन्य रानियां थीं। प्रद्युम्न प्रमुख उनके हजारों पुत्र थे। कुल छप्पन करोड़ यादवों के वे प्रमुख और सर्वमान्य नेता थे।
गजसुकुमार श्रीकृष्ण के लघुभ्राता थे। सोलह वर्ष की अल्पायु में वे मुनि बने। दीक्षा के प्रथम दिन ही उनका निर्वाण हो गया। भाई के अकाल विरह ने श्रीकृष्ण के मानस को मथ दिया। श्रीकृष्ण प्रभु श्री अरिष्टनेमि के चरणों में सर्वात्मना समर्पित थे। प्रभु से उन्होंने अपनी मृत्यु और अपनी नगरी का भविष्य पूछा। भगवान ने स्पष्ट कर दिया कि उनकी नगरी का विनाश मदिरा के कारण होगा तथा उनकी मृत्यु उन्हीं के चचेरे भाई जराकुमार के हाथ से होगी। ___ श्रीकृष्ण ने अपनी नगरी में मदिरापान पर कठोर प्रतिबन्ध लगा दिया। साथ ही यह घोषणा करा दी कि जो भी व्यक्ति दीक्षा लेना चाहे, उसके परिवार का सम्पूर्ण दायित्व श्रीकृष्ण स्वयं वहन करेंगे। उक्त घोषणा का चमत्कारिक प्रभाव हुआ। हजारों-हजार नागरिकों ने एक ही दिन दीक्षा ग्रहण की। श्रीकृष्ण की हजारों रानियों, अनेक पुत्रों और पौत्रों ने भी भगवान का शिष्यत्व ग्रहण किया। उत्कृष्ट धर्मदलाली से श्रीकृष्ण में तीर्थंकर गोत्र का बंध किया। अगली चौबीसी में वे अगम नाम के बारहवें तीर्थंकर होंगे।
- एक बार यादव कुमारों ने अनजाने में मदिरापान कर द्वैपायन ऋषि को महान कष्ट दिया। ऋषि ने निदान करके प्राणोत्सर्ग किया और वह मरकर अग्निकुमार देव बना। जब तक द्वारिका नगरी में धर्म- ध्यान होता रहा, तब तक वह देवता नगरी का कोई अहित न कर सका। एक दिन ऐसा आया जब द्वारिका नगरी में धर्मध्यान नहीं हुआ। अग्निकुमार देव को अवसर मिल गया। उसने अंगारों की घनघोर वर्षा कर द्वारिका - जैन चरित्र कोश ...