________________
निःशुल्क प्रबन्ध करने का दायित्व शाहों (जैन श्रावकों) पर डाल दिया। इस दिशा में राज्य के श्रीमन्त श्रावकों ने भरपूर सहयोग दिया और मितियां लिखाईं। बादशाह ने शाहों को एक महीने का समय दिया था। परन्तु पच्चीस दिन के अथक श्रम के बाद एक सौ नब्बे मितियां ही लिखी जा सकीं। चांपानेर के श्रेष्ठियों ने मिलकर चार महीने की तथा पाटण के श्रेष्ठियों ने दो महीने की मितियां लिखाईं। शाह लोग अन्य मितियों के प्रबन्ध के लिए पाटण से धोलका होते हुए धुंधका के लिए चले । मार्ग में हडाला ग्राम में रुके। वहां पर खेमादेदराणी ने शाहों का स्वागत किया। शाहों के उतरे हुए चेहरों को देखकर उसने विनम्रता से कारण पूछा। शाहों ने संक्षेप में वस्तुस्थिति खेमादेदराणी को कही। सुनकर खेमादेदराणी ने कहा, आप लोग बड़े नगरों के रहने वाले हो। आपको तो जनता की सेवा का लाभ बराबर मिलता ही रहता है। मैं चाहता हूं कि अपना साधर्मी बन्धु समझकर पुण्य का यह कार्य मुझे प्रदान कर दीजिए और वर्षभर की मितियां मेरी ओर से लिख लीजिए!
खेमादेदराणी की बात सुनकर शाह श्रावकों ने समझा कि यह व्यक्ति भोला है और उनके उद्देश्य को समझ नहीं पाया है। शाहों ने बादशाह के आदेश का विस्तार से खुलासा किया और कहा कि वह एकाध मिती लिखवा ले।
खेमादेदराणी शाहों की शंका को समझ गया। उसने कहा-भाइयो ! आप मेरी वेशभूषा और रहन-सहन पर मत जाइए! मैंने जैसा कहा है जिन धर्म की महिमा के कारण मैं वैसा ही करने में समर्थ भी हूं। ऐसा कहकर खेमादेदराणी शाहों को अपने घर के अन्दर ले गया और तिजोरियां खोल दीं। सीधे-सादे खेमादेदराणी की तिजोरियों में रही हुई अकूत संपत्ति को देखकर श्रेष्ठी दंग रह गए। उन्होंने कहा, भाई! तुम बारह महीने ही नहीं, बल्कि बारह वर्षों तक भी गुजरात की जनता का भरण-पोषण कर सकते हो!
अपने वचनानुसार खेमादेदराणी ने अपनी तिजोरियों और अन्न-भण्डारों के मुख खोल दिए और सं. 1539 में बारह महीनों तक गुजरात की जनता का भरण-पोषण किया। एक छोटे से ग्राम में रहने वाले खेमादेदराणी की अकूत संपत्ति और अपार उदारता को देखकर बादशाह शाह-श्रेष्ठियों का विशेष सम्मान करने लगा।
.
.
.
... 130
जैन चरित्र कोश ...