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गंगदत्त अपने व्रत पर अडिग रहा। दूसरे दिन भी कारणवश वह विदेशी व्यापारी शंखपुर में ही रुक गया। गंगदत्त ने उससे पर्याप्त माल खरीदा और प्रभूत लाभ अर्जित किया। पर बाह्य-लाभ को वह वास्तविक लाभ नहीं मानता था। उसने धन का उपयोग सदैव जनकल्याण में ही किया। सादगीपूर्ण धर्ममय जीवन जीकर वह देवगति में गया और वहां से च्यव कर वह मानव बनकर सिद्धि को प्राप्त करेगा। गंगदत्त मुनि
तीर्थंकर मुनिसुव्रत स्वामी के समय के एक मुनि। मनि-दीक्षा लेने से पूर्व गंगदत्त हस्तिनापुर नगर के एक समृद्ध गाथापति थे। कालान्तर में पूर्वजन्म के अशुभ कर्म उदय में आए और वे विपन्न बन गए। इससे गंगदत्त निराश और दुखी नहीं हुए। बल्कि कर्मों की विचित्रता से उनकी धर्म-श्रद्धा और सुदृढ़ बन गई तथा वे गृहस्थ धर्म का त्याग कर अणगार धर्म में प्रव्रजित हो गए। त्याग-तप पूर्वक साधुधर्म का पालन करके गंगदत्त मुनि देहोत्सर्ग के पश्चात् सातवें देवलोक में देव बने।
___ एक बार जब भगवान महावीर उल्लुकतीर नगर में विराजमान थे तो गंगदत्त देव प्रभु के दर्शनों के लिए आया। उस समय शक्रेन्द्र भगवान के चरणों में बैठा हुआ था। गंगदत्त देव के आते ही शक्रेन्द्र वहां से शीघ्र ही चला गया। गौतम स्वामी ने भगवान से पूछा, भंते! क्या कारण है कि गंगदत्त देव के आते ही शक्रेन्द्र त्वरित गति से चला गया?
भगवान ने फरमाया, गौतम! गंगदत्त देव सातवें देवलोक का देवता है और ऋद्धि-सिद्धि और पुण्य-प्रताप में शक्रेन्द्र से ज्येष्ठ है। शक्रेन्द्र उसके तेज को सहन नहीं कर पाया और अपने स्थान पर लौट गया।
प्रस्तुत संदर्भ में टीकाकार ने शक्रेन्द्र के गमन को चिह्नित करते हुए एक अन्य कारण का उल्लेख भी किया है। टीकाकार लिखते हैं, शक्रेन्द्र पूर्वभव में हस्तिनापुर नगर का कार्तिक नामक सेठ था और गंगदत्त का समकालीन था। दोनों में परस्पर ईर्ष्याभाव था। गंगदत्त सेठ जब विपन्न बन गया, तब कार्तिक सेठ की । समृद्धि पहले से भी अधिक बढ़ गई। उस समय समृद्धि और तेज में कार्तिक ज्येष्ठ था और वर्तमान में गंगदत्त ज्येष्ठ है। पूर्वभव का मात्सर्यभाव यहां भी उदित हुआ और शक्रेन्द्र गंगदत्त देव को देखते ही अपने स्थान पर लौट गया। गंगदत्त देव देवलोक से च्यव कर महाविदेह में मनुष्य भव धारण करेगा और उत्कृष्ट चारित्र की आराधना कर सिद्धत्व को प्राप्त होगा। गंग नरेश ____ गंग राजवंश का अभ्युदय और विकास कर्नाटक प्रदेश में हुआ। इस वंश के आदिम पुरुष थे -दद्दिग
और माधव। आचार्य सिंहनन्दि के आशीर्वाद और मार्गदर्शन में दद्दिग और माधव ने गंगवंश की स्थापना की। गंग वंश के राजाओं ने एक हजार वर्ष से अधिक समय तक कर्नाटक (मैसूर) पर शासन किया। गंग वंश के राजाओं में कुछ के नाम इस प्रकार हैं-दद्दिग और माधव, अविनीत गंग, दुर्विनीत गंग, मुष्कर गंग, शिवमार प्रथम, श्री पुरुष मुत्तरस, शिवमार द्वितीय, राचमल्ल सत्यवाक्य प्रथम, एरेयगंग नीतिमार्ग प्रथम रणविक्रम, राचमल्ल सत्यवाक्य द्वितीय, एयरप्प एरेयगंग नीतिमार्ग द्वितीय, सत्यवाक्य महेन्द्रान्तक, राचमल्ल सत्यवाक्य तृतीय, बूतुग द्वितीय गंग-गांगेय, मरुलदेव, मारसिंह आदि।
___ गंग वंश की स्थापना में जैन आचार्य सिंहनन्दि का मार्गदर्शन और आशीर्वाद प्रमुख रहा। इसीलिए इस राजवंश के समस्त नरेश जैन धर्म से अतिशय रूप में प्रभावित रहे। गंग नरेशों का व्यक्तिगत धर्म और राजधर्म जैन धर्म रहा। इन सभी नरेशों ने अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार जैन धर्म की प्रभावना में अपनी भूमिकाएं निभाई। ... 132 ...
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