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खंधक मुनि
सावत्थी नगरी नरेश महाराज कनककेतु और महारानी मलयासुंदरी के अंगजात खंधक कुमार विजयसेन मुनि का उपदेश सुनकर प्रबुद्ध और प्रव्रजित बने । शीघ्र ही जप, तप और आगमों के पारगामी हो गए। विशेष साधना के लिए एकलविहारी बन जनपदों में विचरण करने लगे। खंधक मुनि की संसारपक्षीय सुनंदा नामक एक भगिनी थी, जो कुन्तीनगर के महाराज पुरुषसिंह से विवाहित हुई थी। किसी समय खंधक मुनि
तर आए और भिक्षा के लिए नगर में गए। महल के झरोखे में बैठे राजा और रानी चौपड़ खेल रहे थे । सहसा सुनंदा की दृष्टि मुनि पर पड़ी। वह भाई को पहचान तो न सकी, पर उसे यह विचार आया कि उसका भाई भी कहीं न कहीं ऐसे ही घूम रहा होगा। इस विचार से वह साश्रु हो गई और खेल से उसका ध्यान हट गया। अदूरदर्शी राजा सशंकित बन गया । राजसभा में जाकर उसने जल्लाद को बुलाकर आदेश दिया कि वह अमुक मुनि को वधस्थल में ले जाकर उसकी चमड़ी उतार दे। जल्लाद ने राजा के आदेश का पालन किया। उसने मुनि के शरीर से सारी चमड़ी छील दी। परम समता में निमग्न मुनि केवली बनकर निर्वाण को प्राप्त हो गए।
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शीघ्र ही मुनि की जघन्य हत्या का समाचार सारे नगर में फैल गया । सब ओर राजा का अपयश गया। सच्चाई जानकर सुनंदा तो अचेत ही हो गई। आखिर उधर आचार्य धर्मघोष पधारे।
राजा ने पश्चात्ताप में जलते हुए उस द्वारा हुए उस जघन्य कार्य का कारण आचार्य श्री से पूछा । आचार्य श्रीने स्पष्ट किया कि पूर्वभव में खंधक के जीव ने बड़े ही उग्र भावों से एक काचर (फल विशेष) का छिलका छीला था। उस काचर में तुम भी एक जीव थे। उसका बदला इस जन्म में तुमने मुनि की चमड़ी छिलवा कर लिया है। उसके बाद राजा के जीवन में महान परिवर्तन हो गया। वह विचारवान और विवेकशील बन गया ।
- आवश्यक कथा
खंडरक्षा
खंडा
काम्पिल्यपुर नगर का एक श्रमणोपासक । (देखिए - अश्वमित्र निन्हव)
ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती की एक रानी । (देखिए - ब्रह्मराजा )
खपुट (आचार्य)
.: की पांचवीं शताब्दी में हुए एक विद्या सिद्ध आचार्य । खपुटाचार्य ने अपने विद्याबल से कई बार जैन संघ को संकट मुक्त किया। उनके कई शिष्य थे, जिनमें आर्य भुवन और आर्य महेन्द्र विश्रुत और योग्य शिष्यरल थे । भुवन अनेक विद्याओं में पारंगत होने के साथ श्रुतसागर के भी पारगामी थे। राज्य खपुटाचार्य की विहारस्थली थी । भृगुकच्छ का राजा बलमित्र बौद्ध भक्त था । एकदा बौद्ध भिक्षुओं ने - जैन चरित्र कोश •••
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