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कौशल्या माता
अयोध्यापति दशरथ की पटरानी और मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम की माता । जैन और वैदिक साहित्य में उसका चरित्र चित्रण पूरे गौरव के साथ हुआ है। वह श्रीराम की माता थी, इसीलिए साहित्यकारों ने उसे स्वर्णाक्षर नहीं दिए हैं बल्कि उसके आदर्श जीवन ने साहित्यकारों की कलम को आकर्षित किया है। उसका संक्षिप्त शब्द-चित्र यों है
कौशल्या कुशस्थल नरेश सुकौशल की पुत्री थी। उसकी माता का नाम अमृतप्रभा था। जब उसका जन्म हुआ तो उसका नाम अपराजिता रखा गया, पर पितृनामानुसार वह कौशल्या नाम से ही ख्यात हुई । दशरथ दिग्विजय करते हुए कुशस्थल आए । अयोध्या और कुशस्थल की सेनाओं के मध्य युद्ध पश्चात् कुशस्थल नरेश को दशरथ की अधीनता स्वीकार करनी पड़ी। उसने अपनी पुत्री कौशल्या का विवाह दशरथ के साथ कर दिया । दशरथ ने कौशल्या को अपनी पटरानी बनाया। कालान्तर में दशरथ ने तीन अन्य राजकन्याओं - सुमित्रा, कैकेयी और सुप्रभा से विवाह किया। कौशल्या ने सपत्नियों को सौतभाव के स्थान पर सहजात बहनों-सा प्यार दिया। उसने जिस पुत्र को जन्म दिया, उन श्रीराम का जीवन समस्त जगत के लिए आज भी परम आदर्श है।
पति के वचन की रक्षा के लिए कौशल्या ने अपने पुत्र और पुत्रवधू को राजतिलक के स्थान पर वन में जाने की आज्ञा देकर भारतीय नारी की माता की ममता पर उसकी आदर्श कर्त्तव्यपरायणता अंकित की । पुत्र का विरह और पति की मृत्यु भी उसके मन में कैकेयी के प्रति अणु मात्र भी विद्वेष उत्पन्न न कर सकी। पारिवारिक तनाव के विष का उसने शिव बनकर गरलपान कर लिया ।
रावण वध के पश्चात् श्रीराम अयोध्या लौटे तो कौशल्या का सुख - सूर्योदय हुआ । पर सुख में भी उसने अपने आत्मलक्ष्य को विस्मृत नहीं किया । आत्मकल्याणार्थ उसने पुत्र की आज्ञा लेकर संयम ग्रहण किया और सर्वकर्म खपाकर निर्वाण प्राप्त किया। जैन जगत में अर्चित सोलह महासतियों में कौशल्या भी एक हैं। - त्रिषष्टि शलाकापुरुष चारित्र, पर्व 7
(क) क्षुल्लक मुनि
एक मुनि जो बाल्यावस्था में ही मुनिधर्म में प्रव्रजित हो गया था और जिसका मन संयम पर्याय के अड़तालीस वर्षों तक संयमरूपी गृह से बाहर ही भटकता रहा । आखिर एक नटी के गाथा पद को सुनकर वह संयमच्युत होने के बाद भी पुनः संयम में सुस्थिर बन गया। उसका कथानक निम्नोक्त है
साकेत नगर के राजा का नाम पुंडरीक था। पुंडरीक का अनुज कुंडरीक युवराज था। कुंडरीक की पत्नी थी सुभद्रा, जो परम रूपसी और पतिव्रता नारी थी। किसी समय राजा पुंडरीक अनुज-वधू के रूप पर मोहित हो गया और उसने उसे प्राप्त करने के लिए अनुज का वध कर दिया। सुभद्रा अपने शील की रक्षा के लिए जंगलों में चली गई और एक साध्वी मंडल में प्रव्रजित हो गई। प्रव्रज्या के समय सुभद्रा को गूढगर्भ था । यथासमय गर्भ के लक्षण प्रकट होने लगे तो उसने गुरुणी से वस्तुस्थिति कही । गुरुणी ने एक श्राविका के घर प्रसव की व्यवस्था करा दी। सुभद्रा का पुत्र श्राविका के घर पला-बढ़ा। जब वह बड़ा हुआ तो उसे दीक्षित करा दिया गया। उसका नाम क्षुल्लक मुनि रखा गया । परन्तु युवावस्था में प्रवेश पाते ही क्षुल्लक मुनि का मन संयमरूपी गृह से बाहर दौड़ने लगा । वह अपनी माता साध्वी सुभद्रा के पास गया और उसने अपनी मनोस्थिति कही। माता ने कहा, वह उसके कहने पर बारह वर्षों तक संयम पर्याय का पालन अवश्य ••• जैन चरित्र कोश
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