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गणिका को अपने महल में रख लिया। उससे जो पुत्र उत्पन्न हुआ उसका नाम कालाइशया रखा गया।
__ किसी समय कालाइशया अपने महल में सो रहा था। एक श्रृगाल का शब्द सुनकर उसकी निद्रा भंग हो गई। उसे श्रृगाल पर बहुत क्रोध आया। अनुचरों से उसने श्रृगाल को पकड़वा कर मंगवाया और उसका वध कर दिया। मृत्यु को प्राप्त कर श्रृगाल का जीव व्यंतर जाति का देव बना। कालान्तर में कालाइशया मसा रोग से पीड़ित हो गया। रोग ठीक न होने से उसे वैराग्य हो गया और वह साधु बन गया। दीक्षा के समय ही उसने आजीवन उपचार और औषधादि ग्रहण न करने की प्रतिज्ञा भी धारण कर ली।
देहव्याधियों से घिरे मुनि कालाइशया समभाव से जीवन बिताने लगे। विचरण करते हुए मुनिवर मुशाल नगर में पहुंचे। वहां के राजा से कालाइशया की बहन का विवाह हुआ था। बहन ने भाई की रुग्णावस्था को देखा और औषधमिश्रित आहार तैयार किया। मुनि भिक्षा लेने पधारे। बहन ने वह आहार मुनि के पात्र में बहरा दिया। अपने स्थान पर लौटकर मुनि ने आहार की विशेष गंध से ज्ञात कर लिया कि आहार औषध मिश्रित है। बिना किसी ग्लानि और उत्तेजना के मुनि श्री ने आहार न करने का संकल्प कर लिया। उस आहार को लेकर वे जंगल में चले गए। स्थंडिल भूमि पर आहार को परठ कर मुनि श्री ने संथारा ग्रहण कर लिया। पूर्व पाप के विपाक स्वरूप व्यंतर देव वहां प्रकट हुआ। श्रृगाल रूप धारण कर उसने मुनि श्री के शरीर को नोचना शुरू कर दिया। प्रशान्त समाधि में लीन मुनिवर का शरीर श्रृगाल का आहार बन गया। देहोत्सर्ग कर मुनिवर देवलोक में गए, जहां से भवान्तर में मोक्ष जाएंगे।
-उत्तराध्ययन वृत्ति कालास्यावेषिपुत्र अणगार
प्रभु पार्श्व की परम्परा के एक अणगार। भगवान महावीर के तीर्थ के एक स्थविर मुनि से उन्होंने सामायिक, प्रत्याख्यान, संयम, संवर आदि से सम्बन्धित कई प्रश्न पूछे। जब वे पूर्णतः समाधान को प्राप्त हो गए तो उन्होंने चातुर्याम धर्म से पंच महाव्रतात्मक धर्म में प्रवेश किया और सम्यक् व शुद्ध चारित्र की आराधना कर सुगति के अधिकारी बने। (क) काली ___महाराजा श्रेणिक की रानी, कालकुमार की माता और चम्पाधिपति राजा कोणिक की विमाता । कोणिक की राज्यलिप्सा के कारण मगध देश की राजनीति में भयंकर उथल-पुथल मची तथा अनेक अनहोनी घटनाएं घटीं। कोणिक शीघ्र ही राजसिंहासन पर बैठकर राजसुख लूटने को व्यग्र था। पर उसका मन्तव्य तब तक
नहीं हो सकता था. जब तक उसके पिता श्रेणिक सिंहासनासीन थे।कोणिक ने अपने पिता को मार्ग से हटाने के लिए एक षड्यन्त्र रचा। उसने षड्यन्त्र को क्रियान्वित करने के लिए कालकुमार आदि अपने दस सौतेले भाइयों को अपने पक्ष में कर लिया तथा एक दिन समुचित अवसर देखकर अपने पिता महाराज श्रेणिक को बन्दी बनाकर बन्दीगृह में डाल दिया। तदनन्तर उसने मगध साम्राज्य के ग्यारह भाग किए। एक भाग अपने पास रखा तथा शेष दस भाग अपने दस सौतेले भाइयों में बांट दिए। - कोणिक के दो अन्य सहोदर थे, हल्ल और विहल्ल। किसी समय राजा श्रेणिक ने अपने इन दो पुत्रों को बहुमूल्य अठारहसरा हार और सिंचानक हाथी दिए थे। कोणिक ने राजा बनने पर अपने भाइयों से हार
और हाथी मांगे। हल्ल और विहल्ल ने अपने नाना चेटक की शरण ली। अन्ततः कोणिक और चेटक के मध्य महाभयंकर इतिहास प्रसिद्ध युद्ध हुआ, जिसमें वैशाली का वैभव नष्ट हो गया तथा कालकुमार आदि दस भाई मारे गए। ...जैन चरित्र कोश ...
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