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बाला की इस शर्त को सुनकर राजा ने पूछा, बेटी! कुसुमपुर राज्य से तुम्हारी क्या शत्रुता है? राजा के प्रश्न का उत्तर बाला के वृद्ध पिता ने खड़े होकर दिया, राजन्! मैं कुसुमपुर नरेश विमलसेन हूं। चन्द्रसेन नामक पड़ोसी राजा ने अकस्मात् मेरे राज्य पर धावा बोल दिया। मुझे विवश होकर वन में शरण लेनी पड़ी। ___चन्द्रसेन की धृष्टता की कथा सुनकर राजकुमार कुमारसेन का रक्त खौल उठा। उसने दलबल के साथ चन्द्रसेन पर चढ़ाई कर दी। चन्द्रसेन को बन्दी बना लिया गया। विमलसेन को पुनः राज्यारूढ़ किया गया।
शुभ मुहूर्त में कुमारसेन का विमलसेन की बुद्धिमती पुत्री से पाणिग्रहण हुआ। कालान्तर में कुमारसेन ही कुसुमपुर का राजा बना। उसने न्यायनीतिपूर्वक प्रजा का पालन किया। श्रावकधर्म को अंगीकार कर उसने अपने जीवन को धर्ममय बनाया। आयुष्य पूर्ण कर वह शुभ गति का अधिकारी बना। कुरंगक भील
कमठ का जीव पूर्व के एक भव में उक्त नाम का एक हिंसक भील था। (देखिए-मरुभूति) कुरुदत्त (आचार्य)
उत्कृष्ट आचार का पालन करने वाले एक आचार्य। किसी समय आचार्य कुरुदत्त एक ग्राम के बाहर वृक्ष के नीचे विराजमान हुए। सांध्य प्रतिक्रमण के पश्चात् रात्रि में चार प्रहर पर्यंत कायोत्सर्ग में लीन रहने के संकल्प के साथ आचार्य श्री ध्यान मुद्रा में लीन हो गए। उधर ग्राम में रात्रि में चोर घुस गया। लोग जाग गए। जागरण देखकर चोर भाग खड़ा हुआ। लोग उसके पीछे भागे। जहां आचार्य कुरुदत्त ध्यान प्रतिमा में लीन थे, लोग वहां आए। लोगों ने उनसे चोर के बारे में पूछा। कायोत्सर्ग के संकल्पी आचार्य मौन रहे। लोगों ने उनकी हीलना-निंदना की और अंततः उन्हें ही चोर घोषित कर दिया। ____ लोगों ने मुनि के सिर पर मिट्टी की पाल बांधकर उसमें अग्नि उंडेल दी। मुनिश्री का सिर जलने लगा। असह्य वेदना हुई। परन्तु आचार्य कुरुदत्त ने अपनी ध्यान मुद्रा को बाधित नहीं होने दिया। समता भाव से देहोत्सर्ग करके वे उच्च गति के अधिकारी बने। आगामी भव में वे सिद्धत्व प्राप्त करेंगे।
-उत्तराध्ययन वृत्ति कुलपुत्र क्षत्रिय ___एक क्षत्रिय कुलपुत्र के भाई की किसी ने हत्या कर दी। हत्या करके हत्यारा कहीं छिप गया। भाई की हत्या पर कुलपुत्र के शोक का पार न रहा। अहर्निश भाई की स्मृति में वह आंसू बहाता रहता।
कुलपुत्र की यह दशा देखकर उसकी माता ने कहा, पुत्र! कायरों की तरह ऐसे कब तक आंसू बहाता रहेगा ! तेरा कर्तव्य है कि तू अपने भाई के हत्यारे को खोज और उसे उचित दण्ड दे!
माता को प्रणाम कर क्षत्रिय कुलपुत्र नंगी तलवार लेकर घर से निकल गया। भाई के हत्यारे को वह निरन्तर खोजता रहा। गांव-गांव, नगर-नगर और वन-वन भटका। बारह वर्ष बीत गए पर न तो उसे भाई का हत्यारा मिला और न ही उसके क्रोध व प्रतिशोध की ज्वालाएं कम हुईं। शत्रु को खोजते-खोजते उसे स्वयं खो जाना तो स्वीकार्य था पर बिना सफल हुए घर लौटना स्वीकार नहीं था।
आखिर एक दिन उसे सफलता मिल ही गई। हत्यारे को समक्ष पाकर वह उस पर टूट पड़ा और उसे बंदी बना लिया। उसे लेकर वह अपनी मां के पास पहुंचा और उसे अपनी माता के चरणों पर पटक दिया। कुलपुत्र ने मां से कहा, मां! यह है हमारा अपराधी ! इसने आपके पुत्र और मेरे भाई की हत्या की है। इसे ... जैन चरित्र कोश ..
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