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मृत्यु दण्ड दीजिए !
पुत्र की सफलता पर मां को प्रसन्नता हुई और अपने पुत्र के हत्यारे को समक्ष पाकर उसका हृदय घृणा और क्रोध से भर गया। कुलपुत्र ने मां से कहा-मां ! आदेश दो कि मैं इसका सिर धड़ से अलग करके अपना प्रतिशोधपूर्ण करूं!
हत्यारा क्षत्राणी के कदमों पर गिरकर पुनः पुनः अपने जीवन की भिक्षा मांग रहा था । वह गिड़गिड़ाते हुए कह रहा था - मां! तुम जैसी ही मेरी मां है, वह मेरे विरह में जी नहीं पाएगी। मेरी पत्नी और मेरे बच्चे अनाथ हो जाएंगे। मुझे क्षमा कर आप कई प्राणियों की रक्षा कर सकती हो। मुझे क्षमा कर दो!
हत्यारे के वचन सुनकर वृद्धा क्षत्राणी का हृदय पसीज गया। वह पुत्र - मृत्यु की वेदना का अनुभव कर बच्चे चुकी थी। उसके कारण कोई अन्य वैसी ही पीड़ा का अनुभव करे, उसके कारण कोई स्त्री और कुछ अनाथ हो जाएं, यह उसके लिए सह्य न था । उसने अपने पुत्र के हाथ से तलवार ले ली और कहा, पुत्र ! इसे क्षमा कर दो! क्षमा से बड़ा प्रतिशोध अन्य नहीं है। हिंसा से हिंसा का स्रोत कभी सूख नहीं सकता। क्रोध क्रोध की आग कभी शान्त नहीं हो सकती । रक्त-सने वस्त्र के प्रक्षालन के लिए रक्त नहीं, शुद्ध जल की आवश्यकता होती है। इसे क्षमा कर इस वैर-परम्परा का मिटा दो !
मां के वचन सुनकर कुलपुत्र सहम गया। जिस शत्रु की खोज में वह बारह वर्षों तक भूखा प्यासा भटकता रहा था, क्या उसे बिना दण्डित किए छोड़ दिया जाए? पर माता के आदेश के समक्ष कुलपुत्र ने अपने प्रतिशोध को तिलांजलि दे दी। उसने तलवार फैंक दी।
कुलपुत्र ने भोजन कराकर उस व्यक्ति को विदा किया और क्षमा का अनुपम उदाहरण मानवीय इतिहास के पृष्ठ पर अंकित कर दिया। - उत्तराध्ययन, अ. 1 (कमल संयमी टीका )
कुलिशबाहु
पूर्व विदेह में स्थित पुरानपुर नगर का राजा । (देखिए - मरुभूति)
कुवलयचंद्र
अयोध्या नगरी का एक तेजस्वी राजकुमार । (देखिए - कुवलयमाला) कुवलयमाला
प्राचीन भारतवर्ष की विजया नगरी की रूप- गुण सम्पन्न एक राजकुमारी । कुवलयमाला का विवाह पूर्वजन्म के मित्र और अयोध्या नगरी के राजकुमार कुवलयचंद्र के साथ हुआ। विवाह के पश्चात् कुवलयमा और कुवलयचंद्र ने सुदीर्घ काल तक सांसारिक सुख भोगे । जीवन के पश्चिम प्रहर में दोनों ने प्रव्रज्या धारण कर संयम की आराधना की। दोनों ही आयुष्य पूर्ण कर देवलोक में देव हुए।
देवलोक का आयुष्य पूर्ण कर कुवलयचंद्र का जीव काळंदी नगरी के राजकुमार मणिरथ कुमार के रूप में जन्मा । उसने भगवान महावीर के पास संयम धारण कर सर्व कर्म क्षय कर मोक्ष को प्राप्त किया ।
उधर कुवलयमाला का जीव देवायुष्य पूर्ण कर मगधनरेश श्रेणिक के पुत्र रूप में जन्मा, जहां उसका नाम महारथ कुमार रखा गया। आठ वर्ष की अवस्था में ही महारथ कुमार ने भगवान महावीर के श्री चरणों में प्रव्रज्या अंगीकार की । उत्कृष्ट तपाराधना से केवलज्ञान प्राप्त कर वह भी
सिद्ध हुआ ।
- उद्योतन सूरि कृत कुवलयमाला
• जैन चरित्र कोश •••
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