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किया। सोलह वर्ष की साधना के पश्चात् प्रभु ने केवलज्ञान पाया और धर्मतीर्थ की संस्थापना के साथ ही तीर्थंकर पद पाया। स्वयंभू प्रमुख भगवान के पैंतीस गणधर थे। हजारों श्रमण, श्रमणियां, श्रावक और श्राविकाएं प्रभु के धर्मसंघ के सदस्य थे। सुदीर्घ काल तक कल्याण के स्रोत प्रवाहित कर भगवान ने मासिक अनशन सहित एक हजार मुनियों के साथ सम्मेदशिखर पर्वत से सिद्धि प्राप्त की।
__ -त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र, पर्व 6 कुन्ती रानी
सोलह प्रसिद्ध महासतियों में एक। पांच वीर-वर पुत्र, जिन्हें पाण्डव कहा गया, में से प्रथम तीन युधिष्ठिर, अर्जुन और भीम की जननी तथा कर्मयोगी वासुदेव श्री कृष्ण की बुआ। कुन्ती एक विलक्षण सन्नारी थी। वह शौरीपुर नृप अन्धकवृष्णि की पुत्री और समुद्रविजय आदि दस दशा) की सहजता थी। उसका विवाह हस्तिनापुर नरेश महाराज पाण्डु से हुआ था। परन्तु इस प्रत्यक्ष विवाह से पूर्व वह गन्धर्व विवाह के माध्यम से पाण्डु से पहले ही बन्ध चुकी थी, जिसके परिणामस्वरूप उसने एक पुत्र को भी जन्म दिया था, पर लोकलाज के भय से उसने उस नवजात पुत्र को एक पेटिका में रखकर नदी में बहा दिया था। यही पुत्र आगे चलकर कर्ण नाम से ख्यात हुआ, जो छठा पाण्डव था। __ कुन्ती एक परम पतिव्रता नारी के साथ-साथ एक वीर क्षत्राणी और वीर माता भी थी। युधिष्ठिर जब चौपड़ के पासों पर अपना सर्वस्व हार गए, स्वयं सहित अपने भाइयों और द्रौपदी को भी हार गए, तब उन्हें तेरह वर्षों का निर्वासित जीवन जंगलों में बिताना पड़ा। ऐसे में कुन्ती ने महलों के सुख को ठुकराकर वनों की खाक छानना स्वीकार किया। एक बार द्रौपदी के कहने पर भीम एक जलाशय से कमल लेने गए तो वे वापिस नहीं लौटे। उनके पीछे क्रमशः अर्जुन, नकुल, सहदेव और युधिष्ठिर भी गए, पर ये सब भी जलाशय में समा गए। वस्तुतः वह जलाशय एक नागराज के अधिकार में था और उसी ने पाण्डवों को बन्दी बना लिया था। पुत्रों के न लौटने से कुन्ती और द्रौपदी घबरा उठी। पर कुन्ती के विवेक ने उसे सचेत किया कि घबरा कर बैठ जाना संकट का समाधान नहीं है। उसने नवकार मंत्र की आराधना प्रारंभ कर दी। द्रौपदी ने भी उसका अक्षरशः अनुगमन किया। एक साथ दो-दो महासतियों की पुकार से इन्द्रासन हिल गया। इन्द्र ने अपने अवधिज्ञान से पूरी बात जानी और सख्त आदेश के साथ एक देवता नागराज के पास भेजा। इन्द्र के आदेश से भयभीत नागराज ने पांचों पाण्डवों को मुक्त कर दिया। ___ वह कुन्ती ही थी, जिसने अपने पुत्रों को धर्ममय संस्कारों से इतना रंगा था कि उसका बड़ा पुत्र तो आज भी धर्मराज के रूप भी वन्दित होता है। महाभारत के प्रलयंकारी युद्ध में भी कुन्ती अपने पुत्रों को युद्ध-नियमों में बंधकर युद्ध करने की प्रेरणा दिया करती थी। युद्ध जीत लेने पर कुन्ती राजमाता के पद पर प्रतिष्ठित हुई। ___कालान्तर में जब धातकी खण्ड की अमरकंका नगरी के राजा पद्मनाभ ने द्रौपदी का हरण कर लिया था और पांचों पाण्डव वासुदेव श्री कृष्ण की कृपा से उसे मुक्त कराके ला रहे थे, तब गंगा महानदी को पार करने के प्रश्न पर पाण्डवों ने श्रीकृष्ण के बल की परीक्षा लेने की भूल की तो श्रीकृष्ण ने क्रोधित बनकर पाण्डवों को अपने राज्य से निष्कासित कर दिया। तब कुन्ती श्रीकृष्ण के पास पहुंची और उसने उनसे कहा-तीन खण्ड पर तुम्हारा शासन है, ऐसे में मेरे पुत्र जाएं तो कहां जाएं?
__ श्री कृष्ण ने समुद्र के किनारे थोड़ा-सा स्थान पाण्डवों को रहने के लिए दिया और उस स्थान को ... जैन चरित्र कोश ...
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