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अन्यत्र चले गए। बाद में शिष्य समूह को अपनी भूल ज्ञात हुई और वह कालकाचार्य के सान्निध्य में पहुंचा। आचार्य से शिष्य समूह ने हार्दिक क्षमापना की और संघ में फिर से श्रुत-सरिता बहने लगी।
कालकाचार्य ने अनेक वर्षों तक श्रमण संघ को कुशल प्रशासन दिया। उनकी गणना जैन परम्परा के प्रभावक आचार्यों में होती है। वे ही प्रथम जैन आचार्य थे, जिनका विहार ईरान, सुमात्रा और जावा तक प्रसृत हुआ।
-प्रभावक चरित्र
काललदेवी
ईसा की 10वीं सदी की एक श्रमणोपासिका। जैन धर्म के प्रति उसके हृदय में अनन्य आस्था थी।
काललदेवी गंगनरेश के महामंत्री चामुण्डराय की माता थी। काललदेवी की प्रेरणा से ही चामुण्डराय ने विश्वविश्रुत गोमटेश्वर (बाहुबली) की 57 फुट ऊंची प्रतिमा का निर्माण कराया था। यह प्रतिमा शिल्पकला तथा मूर्तिविज्ञान की अद्भुत कलाकृति है। ई.स. 978 में इस प्रतिमा की स्थापना की गई थी। कालसौकरिक कसाई
राजगृह नगर का एक कुख्यात कसाई। वह पांच सौ भैंसे प्रतिदिन मारता था और मांस विक्रय कर प्रभूत धन कमाता था। एक बार जब महाराज श्रेणिक ने भगवान महावीर से अपनी नरकगति को तोड़ने का उपाय पूछा तो भगवान ने स्पष्ट किया कि यह संभव नहीं है। सम्राट् श्रेणिक के पुनः-पुनः आग्रह पर भगवान ने कहा कि यदि वह कालसौकरिक कसाई को एक दिन उसके व्यवसाय से / हिंसा-कर्म से दूर रख सके तो उसके नरक के बन्धन टूट सकते हैं। राजा कालसौकरिक के पास पहुंचा और एक दिन के लिए उसे हिंसा न करने के लिए कहा। कालसौकरिक ने कहा, यह उसके व्यवसाय के साथ-साथ उसका कुलधर्म भी है। वह अपने कुलधर्म को नहीं छोड़ सकता है। राजा ने उसे अपना राज्य देने का प्रलोभन दिया, पर वह अपने कुल- धर्म को छोड़ने के लिए राजी नहीं हुआ। आखिर राजा ने उसको पैरों से रस्सी बांधकर कुएं में उलटा लटकवा दिया। श्रेणिक को भरोसा हो गया कि उसने कालसौकरिक को एक दिन के लिए हिंसा नहीं करने दी है। वह भगवान के पास पहुंचा और अपनी सफलता की बात कही। भगवान ने कहा, श्रेणिक! तुम असफल रहे हो ! कुएं में उलटे लटके कालसौकरिक ने अपने बदन के मैल के पांच सौ भैंसे बनाकर उनका वध किया है। वह भाव हिंसा कर चुका है।
ऐसे गाढ़कर्मी कालसौकरिक का वर्णन एक अन्य कथा में भी आता है, जब उसके सम्बन्ध में एक देव ने कहा था कि कालसौकरिक का न जीना श्रेष्ठ है और न ही मरना। क्योंकि जीवित रहते हुए वह हिंसा करेगा और मरने पर उसे दुर्गति में जाना होगा। कालसौकरिक ने कई बार भगवान का उपदेश भी सुना। पर उसने हिंसा को ही सदा अपना धर्म माना और मरकर नरक गति में गया। कालहस्ती ___कलंबुका सन्निवेश का एक जमींदार। जमींदार होकर भी वह अपने भाई मेघहस्ती के साथ मिलकर आस-पास के क्षेत्रों में चोरी किया करता था। एक बार कालहस्ती ने भगवान महावीर को बन्दी बना लिया। मेघहस्ती महावीर को पहले क्षत्रियकुण्ड में देख चुका था, अतः महावीर को पहचान कर उसने उनका विनय किया और अपने भाई के अपराध के लिए क्षमा मांगी। कालाइशया
मथुरा नरेश जितशत्रु का पुत्र। राजा जितशत्रु कालाइ नामक गणिका में विशेष मुग्ध था। उसने उस ... 98
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