________________
की पूरी तैयारी करा दी। रानी राजसी-पुरुषवेश में हाथी पर बैठी। राजा उसके सिर पर छत्र तानकर उसके पीछे बैठा। इस प्रकार राजा और रानी वनविहार को निकले। सहसा मौसम बदलने लगा। नभ मेघों से संकुल हो गया। वर्षा की फुहारें गिरने लगीं। ऐसे में हाथी मत्त हो गया। महावत को उसने नीचे फेंक दिया और राजा-रानी को अपनी पीठ पर लिए तीव्र वेग से गहन जंगलों में दौड़ गया। राजा और रानी का जीवन संकट से घिर चुका था। जिस मार्ग पर हाथी दौड़ा जा रहा था, उस मार्ग पर सामने एक झुकी हुई शाखाओं वाला वृक्ष था। राजा ने रानी को सचेत किया कि हाथी जब उस वृक्ष के नीचे से गुजरे तो उन्हें शाखाएं पकड़ प्राण रक्षा करनी चाहिए। जैसे ही हाथी उस वृक्ष के नीचे से गुजरा, राजा ने तो शाखा पकड़ ली लेकिन रानी वैसा न कर सकी। राजा ने रानी को पीठ पर लिए हाथी को दूर सघन जंगलों में विलीन होते देखा। निराश-हताश राजा अपने नगर को लौट गया। ____ उधर हाथी बहुत दूर निकल गया। एक जगह जलाशय देखकर हाथी पानी पीने के लिए रुक गया। रानी ने अवसर पाकर जलाशय में छलांग लगा दी और तैर कर दूसरे तट पर पहुंच गई। वह एक दिशा में चली तो उसे एक तापस मिला, जिसने उसे बताया कि यहां से कुछ ही दूरी पर दत्तपुर नगर है, वहां का राजा उसकी यथेच्छ सहायता कर सकता है। तापस ने कुछ दूर तक साथ जाकर पद्मावती को नगर का सीधा मार्ग बता दिया।
पद्मावती दत्तपुर पहुंची। नगर प्रवेश करते ही उसे कुछ श्रमणियां दिखाई दीं। वह उनके साथ उपाश्रय में चली गई। साध्वियों ने पद्मावती को उपदेश दिया। रानी का हृदय जीवन की नश्वरता अनुभव कर पहले ही विरक्त बन चुका था। सो वह साध्वी बन गई। संकोचवश रानी ने अपने गर्भवती होने की बात छिपा ली। लेकिन समय पर तो यह बात प्रकट होनी ही थी। उसने गुरुणी को पूरी बात कही। आखिर एक विश्वस्त श्रमणोपासिका के घर प्रसव-क्रिया सम्पन्न कराई गई। पद्मावती ने एक सुन्दर पुत्र को जन्म दिया। उसे लेकर वह श्मशान भूमि में गई और वहां बालक को रख दिया। स्वयं झाड़ियों के पीछे छिपकर देखने लगी कि बालक को कौन उठाएगा। श्मशान रक्षक चाण्डाल उधर आ गया। नवजात शिशु को देखकर उसने उसे उठा लिया और अपने घर ले गया। पद्मावती सन्तुष्ट होकर उपाश्रय लौट आई और उसने कल्पित सूचना गुरुणी को दी कि मृत शिशु पैदा हुआ था, जिसे श्मशान में विसर्जित कर दिया गया है।
निःसंतान चाण्डाल संतान पाकर अतीव प्रसन्न था। उसने शिशु का नामक अववर्णिक रखा। पर वह शिशु अपने हाथ से अपने शरीर को खुजलाता रहता था, जिससे उसे करकण्डु कहा जाने लगा। छह वर्ष की अवस्था में ही करकण्डु श्मशान का कार्यभार संभालने लगा। एक दिन वह श्मशान के द्वार पर खड़ा था। उधर से दो मुनि गुजरे। गुरु ने श्मशान भूमि में उगे एक बांस को देखकर शिष्य से कहा-जब यह बांस चार अंगुल का होगा, इसे जो धारण करेगा, वह निश्चित ही राजा बनेगा। करकण्डु ने तो मुनि की यह बात सुनी ही, एक ब्राह्मणपुत्र ने भी इसे सुन लिया। बांस के उस पौधे पर अधिकार को लेकर दोनों में विवाद हो गया। आखिर यह विवाद पंचों तक पहुंच गया। पंचों ने बांस करकण्डु को देते हुए कहा कि जब वह राजा बन जाए, एक गांव उस ब्राह्मणपुत्र को दे दे। करकण्डु ने इसे पूरे मान से स्वीकार कर लिया।
पंचों का निर्णय ब्राह्मणों के गले न उतरा । उन्होंने इसे अपना अपमान समझा और करकण्डु को मारने का षडयन्त्र रचने लगे। किसी तरह चाण्डाल इस बात को जान गया। वह रात्रि के अन्धेरे में नगर छोडकर अपनी पत्नी और पुत्र के साथ दूर निकल गया। भटकते हुए यह परिवार कलिंग देश की राजधानी कंचनपुर में पहुंचा। कुछ ही दिन पूर्व कलिंग देश का राजा निःसंतान रहते हुए ही कालधर्म को प्राप्त हो गया था। नए ... 88 ..
-... जैन चरित्र कोश ...