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की कि उसने उसका समस्त धन हड़प लिया है। राजा ने सागरदत्त को राजसभा में बुलवाया। वादी और प्रतिवादी - विमल और सागरदत्त ने राजा के समक्ष अपने-अपने पक्ष रखे । परन्तु सत्य और असत्य का निर्णय नहीं हो पाया। तब वादी और प्रतिवादी की सहमति से कमल सेठ को न्याय करने का अधिकार दिया गया । इससे विमल प्रसन्न हुआ । उसे विश्वास था कि उसका पिता उसी के लाभ का फैसला सुनाएगा। पर सागरदत्त को यह विश्वास था कि कमल सेठ दूध का दूध और पानी का पानी करेगा ।
कमल सेठ न्याय के सिंहासन पर बैठे। उन्होंने न्याय करते हुए कहा, विमल के आग्रह पर ही सागरदत्त शर्त स्वीकार की और वह शर्त जीत गया, इसलिए विमल के धन पर सागरदत्त का ही अधिकार है। कमल सेठ के इस न्याय पर सभा में उनकी प्रामाणिकता की जय-जयकार हुई । विमल का मन बैठ गया। राजा ने उसे दण्डित किया । कमल सेठ को राजा ने अपना न्यायाधिकारी नियुक्त किया।
जीवन के उत्तर पक्ष में कमल सेठ ने संयम ग्रहण किया और निरतिचार संयम की आराधना कर वे मोक्ष गए । - जैन कथा रत्नकोष -भाग-2 / धर्मरत्न प्रकरण टीका
(क) कमला
श्रीबाल नामक नगर के राजा नरवाहन की रानी । (देखिए - ललितांग कुमार)
(ख) कमला
भृगुकच्छ नरेश महाराज मेघरथ की पुत्री और सोपारपुर नरेश रतिवल्लभ की अर्द्धांगिनी । एक परम पतिपरायणा, उदारहृदया और रूप- गुण सम्पन्न सन्नारी । किसी समय गिरिवर्धन नगर का राजा कीर्तिध्वज व्यापारियों के मुख से कमला के रूप की प्रशंसा सुनकर उसे प्राप्त करने के लिए अधीर बन गया । उसने अपने विद्याधर मित्र के सहयोग से कमला को पलंग सहित अपहरण करा अपने महल में मंगवा लिया। प्रभात खिलने पर कमला ने अपने को नए स्थान पर पाया। जब तक वह कुछ सोच पाती, कीर्तिध्वज वहां आया । उसने कमला को पूरी घटना बताई और अपना मन्तव्य स्पष्ट कर दिया कि वह उसे अपनी रानी बनाना चाहता है।
कमला ने कीर्तिध्वज को कठोर वचनों से प्रताड़ित किया और कहा कि वह उसके पति के कोप से बच नहीं पाएगा। पर उसके कठोर वचनों का कीर्तिध्वज पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। उसने विभिन्न युक्तियों से कमला को अपने अनुकूल बनाना चाहा पर उसे सफलता नहीं मिली। आखिर उसे उसने जंजीरों में जकड़कर अन्धेरी कोठरी में डाल दिया। राजा को विश्वास था कि कुछ दिनों तक कष्ट भोगकर कमला उसे अपना लेगी ।
उधर राजा रतिवल्लभ ने चतुर्दिक् अपनी रानी की खोज कराई, पर उसे सफलता नहीं मिली। कुछ समय पश्चात् एक अतीन्द्रिय ज्ञानी से रतिवल्लभ को ज्ञात हुआ कि उसकी पत्नी कीर्तिध्वज राजा की बन्दिनी बनी हुई है और अपने शील की रक्षा में तत्पर है। रतिवल्लभ ने विशाल सेना सजाकर गिरिवर्धन नगर के लिए कूच कर दिया ।
उधर गिरिवर्धन नगर में भी एक मुनि आए । राजा मुनिवन्दन के लिए गया। मुनि को वन्दन कर राजा ने उनसे धर्मोपदेश देने की प्रार्थना की। मुनि अतिशय ज्ञानी थे। उन्होंने राजा से कहा, राजन् ! एक सती को बन्दिनी बनाकर तुम धर्मोपदेश सुनना चाहते हो ? उस सती की हितशिक्षा ही तुम्हारे लिए सबसे बड़ा धर्मोपदेश है। शीघ्र ही उस सन्नारी को स्वतन्त्र कर दो अन्यथा सती के कोप से तुम्हारा बच पाना असंभव होगा ! जैन चरित्र कोश *** *** 86 ...