________________
उदकपेढ़ालपुत्र
प्रभु पार्श्व की परम्परा के एक जिज्ञासु मुनि। इंद्रभूति गौतम से उन्होंने संवाद किया और सत्य का बोध पाकर वे महावीर के पंच महाव्रत धर्म संघ में सम्मिलित हो गए। उदयन
कौशाम्बी नरेश शतानीक और महासती मृगावती का पुत्र । शतानीक की मृत्यु.के समय उदयन अल्पायुष्क था। यौवन में वह एक पराक्रमी राजा बना। वह संगीत का रसिक था। अपने समय का लब्धप्रतिष्ठित वीणावादक था। उज्जयिनीपति चण्डप्रद्योत की पुत्री वासवदत्ता वीणावादन सीखने को उत्सुक थी। सभी की दृष्टि उदयन पर स्थिर हुई। पर चण्डप्रद्योत शंकित था कि वासवदत्ता और उदयन परस्पर आकर्षित न हो जाएं। अपने मन में उसने एक योजना बनाई। अपने कुशल सुभटों को उसने एक काष्ठनिर्मित हाथी में बैठाया और उसे जंगल में छोड़ दिया। यांत्रिक हाथी दौड़ने लगा। जंगल में उदयन ने हाथी को देखा। वह उसे वश में करने के लिए दौड़ा। पर हाथी में बैठे सुभटों द्वारा स्वयं पकड़ लिया गया। उदयन को चण्डप्रद्योत के समक्ष पेश किया गया। चण्डप्रद्योत ने सुविचारित योजनानुसार उदयन से कहा कि उसकी पुत्री वीणावादन सीखना चाहती है। पर वह एकाक्षी है। अतः संकुचाती है। वह पर्दे के पीछे रहकर विद्या सीखेगी। उधर
अपनी पुत्री से राजा ने कह दिया कि वीणा सिखाने वाला तो मिल गया है पर वह कुष्ठरोगी है। अतः एक विशेष दूरी रखकर तुम वीणा वादन सीख सकती हो। संक्रामक रोग से तुम पीड़ित न हो जाओ इसलिए तुम दोनों के मध्य पर्दा डाला जाएगा।
चण्डप्रद्योत की योजनानुसार उदयन वासवदत्ता को वीणावादन सिखाने लगा। एक दिन वासवदत्ता का मन अध्ययन में नहीं लग रहा था। वह पुनः-पुनः गलती कर बैठती। उदयन ने क्रोधित स्वर में कहा-एकाक्षी! ठीक से बोल! ___ वासवदत्ता भी राजकुमारी थी। क्रोधित होकर बोली-कुष्ठी! ढंग से बोल । उदयन ने चकित होकर पूछा-कुष्ठी कौन? कन्या ने भी प्रतिप्रश्न किया-एकाक्षी कौन?
आखिर पर्दा उठा। उदयन और वासवदत्ता एक-दूसरे को देखकर चकित रह गए। दोनों के हृदयों में प्रेमांकुर फूट आए। चण्डप्रद्योत के सब यत्न निष्फल हो गए। उदयन वासवदत्ता को लेकर अपने नगर की
ओर भाग चला। स्थिति से भिज्ञ बनकर चण्डप्रद्योत आपे में न रहा। परन्तु विज्ञ शुभचिन्तकों के परामर्श पर उसने उदयन और वासवदत्ता का विवाह कर दिया। ___ उदयन ने बहुत वर्षों तक शासन किया। साध्वी बनी अपनी माता मृगावती से उसने सपत्नी श्रावक धर्म अंगीकार किया। न्याय-नीतिपूर्वक राज्य करते हुए और व्रती जीवन जीते हुए सुगति का अधिकारी बना। उदयप्रभ (आचार्य) ___ एक प्रभावशाली जैन आचार्य। गुजरात नरेश वीरधवल के दरबार में महामात्य पद पर आसीन वस्तुपाल और तेजपाल आचार्य उदयप्रभ के अग्रगण्य श्रावक थे।
आचार्य उदयप्रभ बाल्यकाल में ही दीक्षित हुए थे। नागेन्द्र गच्छ के विजयसेन उनके गुरु थे। अध्ययन में उदयप्रभ काफी गहरे उतरे। व्याख्यान कला में भी वे विशेष प्रवीण थे। साहित्य सृजन के क्षेत्र में भी उन्होंने पर्याप्त सुयश अर्जित किया। उन्होंने कई ग्रन्थों की रचना की। ... 72
--- जैन चरित्र कोश ....