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आतपा (आर्या)
आर्या आतपा अरक्खुरी नगरी की रहने वाली थी और इन आर्या आतपा के माता-पिता का नाम इन्हीं के अनुरूप था। मृत्यु के पश्चात् यह ज्योतिष्केन्द्र की पट्टमहिषी बनी। इनका शेष परिचय काली आर्या के समान है। (दखिए-काली आया)
-ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि.श्रु., वर्ग 7, अ. 2 आत्माराम जी महाराज (आचार्य)
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रमण संघ के प्रथम पट्टधर आचार्य।
आप का जन्म वि.सं. 1939 भाद्रपद शुक्ला द्वादशी के दिन एक क्षत्रिय परिवार में जालंधर जिले के राहों ग्राम में हुआ। आपके पिता का नाम श्रीमान् मनसाराम जी एवं माता का नाम श्रीमती परमेश्वरी देवी था। आपकी बाल्यावस्था में ही आपके माता-पिता का स्वर्गवास हो गया। उसी अवधि में पुण्योदय से आपको आचार्य श्री मोतीराम जी महाराज के दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हुआ। वि.सं. 1951 में आपने आर्हती दीक्षा ग्रहण की। पूज्य श्री शालिगराम जी महाराज आपके दीक्षा गरु बने। आचार्य श्री मोतीराम जी महाराज आपके शिक्षागुरु थे। उनके सान्निध्य में आपने हिन्दी, संस्कृत, प्राकृत, पाली, अपभ्रंश आदि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। साथ ही जैन आगमों का भी आपने सांगोपांग अध्ययन किया। जैनेतर दर्शनों का भी आपने सूक्ष्मता से अध्ययन किया। आपकी स्वाध्याय रुचि जितनी विलक्षण थी, उतनी ही विलक्षण आपकी स्मरण शक्ति भी थी। बत्तीसों आगम आपकी प्रज्ञा में प्राणवन्त बन गए थे। __ दीक्षा के कुछ ही वर्षों के बाद आपकी गणना एक विद्वद्वरेण्य मुनि के रूप में होने लगी। साधु-साध्वियों को आप निरन्तर शास्त्रों का अध्ययन कराते थे। सं. 1969 में आचार्य श्री सोहनलाल जी महाराज ने आपको उपाध्याय पद पर नियुक्त किया। ___ आपश्री ने अनुभव किया-आगम-ज्ञान सर्वगम्य बने। परन्तु आगमों की भाषा प्राकृत होने से वे सर्वगम्य नहीं बन सकते थे। आपने अपने मन में सुदृढ़ संकल्प किया और आगमों पर हिन्दी भाषा में बृहद् व्याख्याएं लिखनी शुरू की। आपने कठोर श्रम करके अठारह आगमों पर बृहद् व्याख्याओं का लेखन किया। आप के उस विशाल लेखन कार्य को देखकर आज भी बड़े-बड़े विद्वान् और कलम-कलाधर हैरत में पड़ जाते हैं।
आगमीय व्याख्याओं के अतिरिक्त जैनागम न्याय संग्रह, जैनागमों में स्याद्वाद, जैनागमों में परमात्मवाद, जैनागमों में अष्टांग योग, तत्वार्थसूत्र जैनागम समन्वय, जैन तत्व कलिका विकास आदि कई दर्जन ग्रन्थों का आपने लेखन किया। आपका प्रत्येक ग्रन्थ आगम-आधृत और पूर्ण प्रामाणिक है। विद्वानों ने आपको जैनागम ज्ञान का विश्वकोष कहा है।
वि.सं. 2003 में आपश्री को पंजाब प्रान्त के आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया गया। वि.सं. 2009 में समग्र स्थानकवासी जैन मुनि संघ का सादड़ी में महासम्मेलन हुआ। उस अवसर पर सभी पदवीधारी मुनिराजों ने सधैक्य के लिए अपने-अपने पदों से त्यागपत्र दिए। श्री वर्द्धमान स्थानकवासी श्रमण संघ के ध्वज के ... 46 .00
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