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पुरुषपुण्डरीक वासुदेव का जब देहान्त हो गया तो आनन्द को बहुत दुख हुआ। छह मास तक तो वे भाई के विरह में उन्मादित बने भटकते रहे। जब उनका शोक शान्त हुआ तो उन्होंने आर्हती दीक्षा धारण कर उग्र तप से सर्व कर्म खपा कर सिद्धत्व प्राप्त किया। उनका कुल आयुष्य 84 हजार वर्ष का था।
-त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र (ख) आनंद (श्रावक)
उपासकदशा में वर्णित भगवान महावीर के दस श्रावकों में से एक। उसने अपनी भार्या शिवानन्दा के साथ भगवान महावीर से श्रायकधर्म की दीक्षा ली थी। वह वाणिज्य ग्राम के निकटवर्ती कोल्लाकसन्निवेश का रहने वाला एक कोटीश्वर गाथापति था। उसके पास चालीस हजार गाएं तथा बारह करोड़ स्वर्ण मुद्राएं थीं।
अनेक वर्षों तक शुद्ध श्रावक धर्म का पालन करते हुए अन्तिम समय में आनंद श्रावक ने आमरण अनशन किया। उस समय उसे विपुल अवधिज्ञान की प्राप्ति हुई। संयोग से उन्हीं दिनों वहां भगवान महावीर पधारे। गौतम स्वामी भिक्षार्थ घूमते हुए आनंद श्रावक के घर गए। आनंद के अनशन की बात जानकर गौतम स्वामी उसे दर्शन देने के लिए पौषधशाला में पधारे। आनंद ने सभक्ति वन्दन करके गौतम स्वामी को अपनी आत्मा में प्रकट हुए विपुल अवधिज्ञान की बात कही। आनंद की बात सुनकर गौतम का मन शंका से भर गया। उन्होंने कह दिया कि वह मिथ्या कह रहा है, श्रावक को विपुल अवधिज्ञान नहीं हो सकता है, अतः उसे मिथ्या भाषण के लिए प्रायश्चित्त करना चाहिए।
आनंद ने विनम्रता से पूछा-भगवन्! प्रायश्चित्त सत्य का होता है या असत्य का ? गौतम स्वामी ने कहा-असत्य का। इस पर आनंद ने कहा-भगवन्! प्रायश्चित्त के पात्र आप हैं क्योंकि असत्य संभाषण आपने किया है ! इसका निर्णय आप भगवान से करा सकते हैं! __ सशंकित मन के साथ गौतमस्वामी भगवान के पास पहुंचे। भगवान ने निर्णय दिया-आनंद ने सत्य बोला है, गौतम ! उसके सत्य को असत्य कहकर तुम प्रायश्चित्त के अधिकारी बन गए हो। सरलचेता गौतम उसी क्षण आनंद के पास पहुंचे और उन्होंने आनंद से क्षमापना की।
एक मास के अनशन के साथ देह त्याग कर आनंद श्रावक प्रथम स्वर्ग में गया। वहां से महाविदेह में जन्म लेकर सिद्ध होगा। आनन्द ऋषि जी महाराज (आचार्य)
श्री वर्धमान स्थानकवासी श्रमण संघ के द्वितीय पटट्धर आचार्य।
आपका जन्म वि.सं. 1957 श्रावण शुक्ल 9, तदनुसार 26 जुलाई सन् 1900 में अहमदनगर के निकटस्थ गांव चिंचोड़ी में हुआ। आपके पूज्य पिता जी का नाम देवीचन्द जी और पूज्या माता जी का नाम हुलासा बाई था। वि.सं. 1970 मार्गशीर्ष शुक्ल नवमी के दिन पूज्य श्री रत्नऋषि जी महाराज के श्री चरणों में मिरीगांव में आप ने दीक्षा व्रत लिया।
वि.सं. 1999 में आप ऋषिसम्प्रदाय के आचार्य बने। तदनन्तर वि.सं. 2019 माघकृष्णा 9 (30 जनवरी 1963) को आप श्री वर्धमान स्थानकवासी श्रमणसंघ के आचार्य पद पर विराजमान हुए।
आप विविध भाषाओं के ज्ञाता और कुशल उपदेष्टा थे। समन्वय और संगठन के आप सदैव पक्षधर रहे। विद्वान और अधिकारसम्पन्न होते हुए भी आप अत्यन्त विनम्र और मूदु थे। आपकी स्वाध्याय और ...48 ..
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