________________
( २० )
aTa heart at नामानि शर्व इति प्राच्या
स
याचक्षते भव इति ।
शतपथ
अनि देवानाममत्रो विष्णुः परमः । कौत्स्य ब्राह्मरण :
७ । १
शतपथ १४/३/२/४
अग्नि देवानामात्मा सर्वान् ।
ताराज्य भाह्मण २५४४९१३
इत्यादि अनेक प्रमाण इसकी पुष्टी करते हैं।
उपरोक्त प्रमाणों में 'वै' शब्द विशेष महत्व का है उसने निराकरण कर दिया है। क्योंकि अमि के ही हैं. 'हो" ने अन्य बातों का खण्डन कर दिया है इसलिये वेदों में वर्तमान ईश्वरवाद की गन्ध भी नहीं हैं ।
ईश्वर की मान्यता का नितान्त वह कहता है कि ये सब नाम
अग्नि (ब्रह्मा)
स्वमध्वरीयसि ब्रह्मा चासि
गृहपतिश्चनो दमे ॥
ऋ० मं० २ । १ । २
सव नाम अभि के हैं । सम्पूर्ण सूक्त सुन्दर है । त्रिभिः पवित्रैर पोर्ध्यकं हृतं ज्योतिरनु प्रजानन् । वर्षिष्टं रत्नमकृत स्वधाभिरादि द्यावा पृथिवी पर्यपश्यत् ॥ ८॥
ऋ० मं० ३ सूक्त २६ । ८
अन्तःकरण द्वारा मनोहर ज्योति को भली भांति जानकर श्रमि ने तीन पवित्र स्त्ररूपों से पूजनीय आत्मा को शुद्ध किया है.