________________
यह मन्त्र बोलकर कहा करते हैं देखो इसमें लिखा है कि एक ही ईश्वर के सब नाम है परन्तु ये लोग अपनी बुद्धिमानी से अथवा अनज्ञान में प्रागे पीछे से मंत्री पर हिना नहीं करत : यदि ऐसा करने को उनके इस कथनकी असलीयतका पना लग जाता । क्योंकि इमसें अगले ही मन्त्र में लिया है कि
कृष्णं नियानं हरयः सुपर्णा अपोक्साना दिवत्मुत्पतन्ति । इत्यादि।
अयात-सुन्दर गति वालो. जल वाहक सूर्य किरणें कृष्णावर्ण नियतगनि मंधको जल पुर्ण करती हुई दालोकमें गमन करती हैं। आदि
इसके आगे मन्त्र ४८ में सूर्य की गतिका वर्णन है तथा उससे उत्पन्न १. मासो का एवं ऋतुओं का कथन है। यहाँ भी स्पष्ट हैं कि उपरोक्त माम ईश्वर के नहीं हैं अपितु सूर्य के ही सत्र नाम हैं। यहाँ मूल मन्त्र में ही लिखा है कि अमिमाहुः । अर्थात इन्द्र मित्र वरुण आदि अग्नि को, हो कहते हैं। तथा च__ प्रथम अग्नि द्युलोक में सूर्य रूप से प्रकट हुश्रा तथा दूसरा अनि पृथ्वी पर सर्वज्ञ मनुष्य के रूपमें प्रकार हुआ। (जास देश का अर्थ सर्वज्ञ है) ऋ०१०४०१ बस जब स्वयं वेद ही अग्निको सर्वज्ञ मनुष्य कहता है सो पुनः इस विषय में शंका को कहाँ स्थान है ?
धाताऽर्यमा च मित्रश्च वरुणोऽशो भगस्तथा । इन्द्रो विवस्वान पूषा च वक्ष च सविता तथाः ।। पर्जन्यचत्र विष्णुश्च आदित्या द्वादशः स्मृताः ।
महाभारत आदिपर्व अध्याय १२३