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ET: असा स्पष्ट है कि ये सब नाम उपाधि पाचक थे । नथ। महा
पुरुषों को इन्हों नामों से विस्वास किया जाता था। ग्राम शब्द के अन्य भी अनेक अर्थ है। परन्तु हमारा इस स्थान पर उनसे
अयोजन नहीं है। हमारा अभिप्राय तो केवल इतना ही है कि । वेदों में अग्मि शब्द का अर्थ पुरुषविशेष भी है । उसके अनेक चाम हैं उनमें एक नाम श्वग्रि भी है। तथा च-- दिवस्परि प्रथमं जज्ञे अग्निरस्मद् द्वितीयं परिजात वेदाः ।
ऋ० वे० मे०१० सू०४५ । १ अर्थात्इदमेवाग्नि महान्तमात्मानमेक मात्मानं । बहुधा मेधाविनो वदन्तीन्द्र मित्रम् ॥
अर्थात्-अग्नि ही सब देवता रूप है यह ब्राह्मण है। तथा न 1. वेद भी अग्नि की ही इन्द्र. मित्र, वरुण, आदि नामों से स्तुति
करता है। इसी अग्नि की बुद्धिमान लोग अनेक नामों से स्तुति करते हैं। इसपर दुर्गाचार्यजी का भाष्य भी देखने योग्य है । यहाँ स्पष्ट लिखा है कि "अप्रिम् श्राहुः तत्वविदः" अर्थात तात्विक शोग अभिके सब नाम कहते हैं । अथवा अग्नि को ही सब नामी : से कहते हैं। . बहुत भाई वेदानभिज्ञ लोगों के सम्मुख ईश्वर के नामों के प्रमाण में निम्न लिखित ममास उपस्थित किया करते है
इन्द्र, मित्र, वरुणमग्नि माहुरथोदिश्यः ससुपोंगरुत्मान एक सय विप्रा बहुधा वदन्ति अनि यमं मातरिश्वानमाहुः
ऋ० म०१मू. १६४ मं०४६