________________
कहा जाता है। विज्ञान एब्सल्यूट कहलाता है। ज्ञान में करना पड़ता है
और विज्ञान स्वयं क्रियाकारी होता है ! भगवान विज्ञान स्वरूप हैं। जब तक ज्ञान, विज्ञान नहीं हो जाता तब तक उसे खरा (असल) आत्मा कह ही नहीं सकते। ज्ञान, वही आत्मा है, लेकिन कौन सा ज्ञान? विज्ञान ज्ञान !
जो फल दे वह विज्ञान है, वर्ना शुष्क ज्ञान है।
भेद ज्ञान ही सर्वस्व ज्ञान है वही केवलज्ञान का द्वार है। इस काल के प्रभाव की वजह से दादाश्री पूर्ण ज्ञानी होने के बावजूद भी निरंतर केवलज्ञान स्वरूप में नहीं रह पाते थे!
फिर भी खुद कभी, डिगे नहीं, थके नहीं, हारे नहीं, वैसे वीतराग हैं ये। कैसे ग़ज़ब के वीतराग!
जो अज्ञान को घुसने ही न दे उसे ज्ञान कहते हैं! अज्ञान खड़ा होने लगे उससे पहले ही जो हाज़िर हो जाए, वही असल में ज्ञान है। वही प्रज्ञा।
ज्ञान मिलते ही रूट कॉज़ गया अब जो दूसरी डालियाँ और पत्ते रह गए हैं, वे झड़ जाएँगे।
जब मान खड़ा होने लगे तब फाइल नंबर वन से कह देना कि बहुत रौब मार रहे हो? मज़े हैं आपके। ऐसे बात करना, या फिर उसे जुदा 'देखना।
अज्ञान से परिग्रह उत्पन्न होते हैं, परिग्रह से उलझन होती है और ज्ञान से उलझन सुलझ जाती है। अतः परिग्रह छूटते जाते हैं।
दादाश्री कहते हैं कि हमें कोई फूल-माला चढ़ाए, उस समय चेहरा हँसता है, उसे भी हम जुदा 'देखते हैं। अभिव्यक्ति अज्ञानी जैसी ही होती हैं लेकिन उसे भी हम जुदा देखते हैं।
ये लागणियाँ (लगाव, भावुकता वाला प्रेम) पूर्व काल के ज्ञान का असर है, उसे आज का ज्ञान देखता है!
जब से 'मैं शुद्धात्मा हूँ' की प्रतीति बैठी तभी से क्रोध-मानमाया-लोभ नष्ट हो गए। जब उदय का ज्ञान और आज का ज्ञान दोनों
43