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खा जाते हैं। वह अशुभ ज्ञान कहलाता है क्योंकि उसका हेतु खाने का है अतः अशुद्ध ज्ञान नहीं कहलाता । उससे भी आगे है शुभ ज्ञान और शुभ समझ। किसी को मारना मत । किसी को दुःख मत देना । कोई मुझे दुःख दे तो भी मैं उसे दुःख नहीं दूँगा । अपने सभी धर्म शुभाशुभ में हैं। ज्ञान और समझ शुभाशुभ की है। शुभ ज्ञान और शुभ समझ, वह सुपर ह्युमन बनाती है। यहाँ से देवलोक (स्वर्ग) में जाता है और शुद्ध ज्ञान वाला कैसा होता है ? कोई जेब काट रहा हो तो भी उसे वह दोषित नहीं दिखाई देता। जिसे जगत् निर्दोष दिखाई देता है, वह वीतराग ही कहलाता है, वही परमात्मा है।
रिलेटिव ज्ञान और रियल ज्ञान दोनों एक सरीखे चलते हैं, पैरेलल चलते हैं, 99.99 तक दोनों एक सरीखे चलते हैं, तब तक रिलेटिव फोटो रूपी है और रियल एक्ज़ेक्ट रूप से है । उस चरम ज्ञान का फोटो नहीं लिया जा सकता। लेकिन क्योंकि रिलेटिव ज्ञान है इसीलिए वह क्रियाकारी नहीं होता और रियल ज्ञान स्वयं क्रियाकारी होता है !
आत्मा तो पूर्ण ज्ञानी ही है, अब जब अंत में पुद्गल का ज्ञान पूर्ण हो जाएगा तब मोक्ष मिल जाएगा। पुद्गल को भी भगवान बनाना है । ज्ञानी के पास बैठ-बैठकर, उन्हें देख-देखकर भगवान रूपी हुआ जा सकता है।
ज्ञान के दो प्रकार हैं। एक है 'अज्ञान ज्ञान'। जो 'ज्ञान' अज्ञान स्वरूप से है, वह जीवंत नहीं है । कार्यकारी नहीं है । उस ज्ञान को जितना जानते हैं, हमें उतना ही खुद करना पड़ता है जबकि चेतन ज्ञान स्वयं क्रियाकारी होता है। उदाहरण के तौर पर किसी संत ने ऐसा कहा है कि चोरी मत करो, लेकिन उसके लिए खूब स्ट्रगल करना पड़ता है, बंद करनी पड़े तो भी दूसरी तरफ चोरी चलती ही रहती है और ज्ञान की समझ तो स्वयं बंद करवा देती है । विज्ञान अंदर चेतावनी देता रहता है । बंधने ही नहीं देता ।
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पुस्तक का ज्ञान स्थूल ज्ञान कहलाता है। उतना मज़बूत कर ले तो भी आगे जाकर ज्ञान का अधिकारी हो जाएगा ।
आत्मज्ञान होने तक ज्ञान कहलाता है और उससे आगे उसे विज्ञान 42