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प्रतिनिधि अहंकार को स्वीकार करते हैं। यह बहुत गहरी बात है।
उपादान ही अहंकार है। वह 'खुद' ही। लेकिन यों वास्तव में अंहकार अलग है लेकिन 'वह' इस ज्ञान-अज्ञान के आधार पर ही करता है। जहाँ पर ज्ञान और अज्ञान दोनों ही हैं वहाँ पर अहंकार है ही।
ज्ञान मिलने के बाद पुरुष भाग कौन सा है ? ज्ञान ही परमात्मा है, ज्ञान ही पुरुष। ज्ञान-अज्ञान का मिश्रण, वह प्रकृति है।
ज्ञान अर्थात् प्रकाश, समझ नहीं। ज्ञान का प्रकाश दिखाने पर ही सामने वाले को समझ में आता है। किसी के दिखाने पर ही ज्ञान समझ में आता है और फिर वर्तन में आता है। समझ में नहीं हो तो भले कितना भी ज्ञान प्रकाश दिया जाए फिर भी वर्तन में नहीं आएगा। अतः समझ और ज्ञान दो अलग चीजें हैं।
ज्ञान परिणाम सूर्य की किरणों जैसा है। ज्ञान ज्ञेय को ज्ञेयाकार दिखाता है।
मन अज्ञान परिणाम की गाँठ है। क्या ज्ञान की गाँठे पड़ती हैं ? नहीं, कभी भी नहीं। ज्ञान के अंदर पुद्गल मिश्रित हो जाए तभी गाँठ पड़ती है। अतः अज्ञान परिणाम पुद्गल सहित ही होता है।
अज्ञान में स्पंदन होते हैं, ज्ञान में नहीं।
ज्ञान प्राप्ति का साधन क्या है? प्रत्यक्ष ज्ञानी ही एक मात्र साधन हैं और जो-जो स्वयंबुद्ध हुए हैं, उन्हें भी पिछले जन्म में सद्गुरु मिले थे।
क्या दादाश्री के ज्ञान और तीर्थकरों के ज्ञान में फर्क है? नहीं, प्रकाश एक ही प्रकार का है। उसमें फर्क नहीं होता। हाँ, देशकाल के अधीन भाषा में फर्क हो सकता है।
___ शुद्ध ज्ञान ही परमात्मा है। शुभ ज्ञान, वह शुभ आत्मा है। अशुभ ज्ञान, वह अशुभ आत्मा है।
आदिवासी मनोरंजन के लिए जानवरों को काट लेता है, खाने के लिए नहीं। वह अशुद्ध ज्ञान है। दूसरे लोग बकरे काटते हैं लेकिन उन्हें
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