________________
जगत् की अधिकरण क्रिया इस जगत् का अधिष्ठान क्या है? उसकी अधिकरण क्रिया किस आधार पर हो रही है? जगत् के लिए यह एक गहन पहेली खड़ी हो गई है। जगत् को सच्चा अधिष्ठान आज हमारे माध्यम से कुदरती रूप से प्रकट होकर मिल रहा है।
'प्रतिष्ठित आत्मा,' वह इस जगत् का सबसे बड़ा अधिष्ठान है।
इस 'प्रतिष्ठित आत्मा' की अधिकरण क्रिया कौन सी ? अज्ञानशक्ति से अधिकरण क्रिया चलती रहती है। मैं चंदूलाल हूँ' ऐसा जो भ्रांति से बोलता है, उसकी बिलीफ़ में और वर्तन में भी 'मैं चंदूलाल हूँ' वही है। वही इस जगत् की अधिकरण क्रिया है। जहाँ खुद नहीं है, वहाँ आरोपण करता है कि 'मैं चंदूलाल हूँ' और उस आरोपित भाव में ही सबकुछ करता है और खुद को ही कर्ता मानता है। उससे अधिकरण क्रिया हो रही है। दूसरे शब्दों में कहें तो 'मैं चंदूलाल हूँ, यह मेरी देह है, जो भी कुछ हो रहा है, वह मैंने किया' वह सारी प्रतिष्ठा हुई। पिछले जन्म में जो-जो कर्म किए हुए हैं, जो-जो प्रतिष्ठा की हुई है, उससे इस जन्म के प्रतिष्ठित आत्मा' का निर्माण हुआ। अब इस जन्म में यह 'प्रतिष्ठित आत्मा' डिस्चार्ज होता है, तब भ्रांति खड़ी ही रहती है। इसलिए नयी अधिकरण क्रिया चलती ही रहती है और उससे अगले जन्म का नया 'प्रतिष्ठित आत्मा' तैयार होता है। जो-जो चार्ज किया, उसका डिस्चार्ज तो अवश्य होगा ही। उसमें कोई बाल बराबर भी बदलाव कर सके ऐसा नहीं है। क्योंकि वह इफेक्ट है और इफेक्ट कोई रोक नहीं सकता।
अब यह 'प्रतिष्ठित आत्मा शुद्धात्मा' से बिल्कुल भिन्न है। 'प्रतिष्ठित आत्मा' और 'शुद्धात्मा' के बीच ज्ञेय-ज्ञाता का संबंध है। यह ज्ञेय-ज्ञाता