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तीर्थङ्कर चरित्र हीन के घर में कल्पवृक्ष नहीं उगता; न वहाँ कभी धन की वृष्टि होती है । आप संसार-समुद्र से पार होने के लिये जहाज के समान हैं । आप सच्चे. धर्मोपदेशक व सद्गुरु हैं । आप जैसे सद्गुरु को प्राप्त करके भी मैंने कभी अमृत समान वचन नहीं सुने । प्रभो । मेरे इस प्रमाद को क्षमा - कीजिए । . ____सार्थवाह के ये वचन सुनकर अवसर के ज्ञाता आचार्य ' कहने लगे-सार्थपते ! भापको दुःखी न होना चाहिये। जंगल में क्रूर प्राणियों से हमारी रक्षा करके आपने सब कुछ कर लिया है । काफिले के लोगों से इस देश और कल्प के अनुसार आहार आदि मिल जाते हैं।
सार्थवाह ने कहा-भगवन् ! यह आपकी महानता है कि मेरे अपराध की ओर ध्यान न देकर भाप मेरी प्रशंसा करते हैं तथा प्रत्येक परिस्थिति में संतुष्ट रहते हैं। किसी दिन मुझे भी दान का लाभ देने की कृपा कीजिये ।
आचार्य ने कहा-कल्पानुसार देखा जायगा । इसके बाद सार्थवाह वन्दना करके चला गया । - · उस दिन के बाद सार्थवाह प्रतिदिन भोजन के समय मुनियों की प्रतीक्षा करने लगा। एक दिन गोचरी के लिये फिरते हुए दो मुान उसके निवासस्थान में पधारे । सार्थवाह को बड़ी खुशी हुई। वह सोचने लगा-आज मेरे धन्य भाग्य हैं, जो मेरे घर मुनियों का आगमन हुआ, किन्तु इन्हें क्या दिया जाय ? पास में ताजा घी पड़ा था। सार्थवाहं ने उसे हाथ में लेकर मुनियों को प्रार्थना की । यदि यह ,प्रहणीय हो तो आप इसे ग्रहण करें । प्रहणीय है, यह कह कर मुनियों ने पात्र बढ़ा दिया । सार्थवाह बहुत प्रसन्न हुआ और अपने जन्म को कृतार्थ समझता-हुआ घी देने लगा। घी देते समय सेठ के परिणाम इतने उच्च हुए कि देवों को भी भाश्चर्य होने लगा। सेठ के परिणामों की परीक्षा करने के लिए देवताओं ने मुनि की दृष्टि बाँध दी