Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
प्रमेयचन्द्रिकाटीका श० १३०६ सू०५ लोकस्थितिवर्णनम्
६७ अष्टविधा लोकस्थितिः प्रज्ञप्ताः 'तं जहा' तद्यथा-'आगासपईटिए वाए ' आकाशप्रतिष्ठितो वातः-आकाशे प्रतिष्ठा स्थितिर्विद्यते यस्यासौ आकाशप्रतिष्ठित आकाशाधिकरणको वायुस्तनु वातधनवातरूपः, तस्यावकाशान्तरोपरिस्थितत्वात् । ननु यथा वायुराकाशे प्रतिष्ठितस्तथा आकाशस्यापि किंचिदधिष्ठानमस्ति न वा?, अस्ति चेत्तदा तदधिकरणं मूल कृता कुतो न दर्शितम् , नास्ति इति चेत् तदा उत्तर इस प्रकारसे दिया कि हे गौतम! लोक की स्थिति आठ प्रकारकी कही गई है। (तं जहा) वह आठ प्रकार की स्थिति इस तरहसे है-(आगासपइट्ठिए बाए, वायपइहिए उदही, उदहिपइडिया पुढवी, पुढविपइडिया तसा थावरा पाणा, अजीवा जीवपइडिया, जीवा कम्मपइडिया, अजीवा जीवसंगहिया, जीवा कम्मसंगहिया) आकाशप्रतिष्ठित वात (१), वातप्रतिष्ठित उदधि (२), उदधिप्रतिष्ठित पृथिवी(३), पृथिवीप्रतिष्ठित स स्थावर प्राण-जीव(४), जीवप्रतिष्ठित अजीव(५), कर्मप्रतिष्ठित जीव(६), जीवसंगृहीत अजीव (७), और कर्मसंगृहीत जीव (८)। आकाश में जिसकी स्थिति है ऐसा तनुवातरूप और घनवातरूप जो वायु है वह आका शप्रतिष्ठितवायु है। यह वायु अवकाशान्तर के ऊपर स्थित रहता है।
शंका-जिस प्रकारसे वायु आकाश में प्रतिष्ठित कहा गया है उसी प्रकार से आकाश को भी किसी और में प्रतिष्ठित बताना चाहिये। यदि इस पर कहा जाय कि आकाश का आधार और कोई नहीं है तो हम इस पर यों कह सकते हैं कि जिस प्रकार बिना आधार के वायुके सोनी स्थिति मा ४२नी ही छ. (तजहा) ते २मा प्रा४२ मा प्रभारी छ(आगासपइट्ठिए वाए, वायपइदिए उदही, उदहीवइट्ठिया पुढवी, पुढवीपइडिया तसा थावरा पाणा, अजीवा जीवपइट्ठिया, जीवा कम्मपइट्ठिया, अजीवा जीवसंगहिया, जीवा कम्मसंगहिया) (१) माशप्रतिष्ठितवायु, (२) वायुप्रतितिधि (3) हधिપ્રતિષ્ઠિત પૃથ્વી, (૪) પૃથ્વી પ્રતિષ્ઠિત ત્રણ સ્થાવર પ્રાણિઓ, (૫) જીવ પ્રતિષ્ઠિત म७१, (6) मतित ७व, (७) ०१सहीत 2404 मने (८) भसगडीत १.
આકાશને આધારે જેની સ્થિતિ છે એવા જે તનુવાત અને ઘનવાત તેનું નામ આકાશપ્રતિષ્ઠિત વાયુ છે. તે વાયુ અવકાશાન્તર ઉપર રહેલ છે.
શંકા–જેવી રીતે વાયુને આકાશના આધારે પ્રતિષ્ઠિત (રહેલો) કહે છે, એજ પ્રમાણે આકાશને પણ કોઈ બીજા પદાર્થના આધારે પ્રતિષ્ઠિત બતાવવું જોઈએ. જે તેના જવાબમાં એમ કહેવામાં આવે કે આકાશને કેઈ આધાર નથી, તે તેની સામે એ દલીલ કરી શકાય કે જેવી રીતે આધાર વગર
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨