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आचारांगभाष्यम् कुर्वतः संज्ञिपूर्व जातिस्मरणं समुत्पन्नं ।' सुदर्शनष्ठि - से संज्ञिपूर्व (समनस्क जन्मों को जाननेवाला) जातिस्मृति ज्ञान उत्पन्न नोऽपि अनेनैव क्रमेण जातिस्मरणं समुत्पन्नम् ।
हुआ। सुदर्शन सेठ को भी इसी क्रम से जातिस्मरण ज्ञान प्राप्त हुआ। ३. इहापोहमग्गणगवेसणं-अस्मिन् विषये 'ईहापोह- ३. ईहा-अपोह-मार्गणा-गवेषणा :-इस प्रसंग में ईहा, अपोह, मार्गणगवेषणा' इमानि चत्वारि पदानि जातिस्मृतेः मार्गणा और गवेषणा—ये चार पद 'जातिस्मृति' की प्रक्रिया प्रक्रियामुद्भावयन्ति । यथा मेघकुमारेण मेरुप्रभहस्तिनो
को प्रकट करते हैं। नामाऽऽकणितम् । तत्र तस्येहा प्रवृत्ता। तं हस्तिनं ज्ञातुं जैसे ही मेधकुमार ने मेरुप्रभ हाथी का नाम सुना, वहां चित्ते किञ्चिदान्दोलनं प्रवृत्तम्। ततोऽनन्तरमपोहो उसकी ईहा (पूर्व स्मृति के लिए प्रारंभिक मानसिक चेष्टा) प्रवृत्त जात:--'किमासमहं हस्ती?' इमां तर्कणां कुर्वाण: स हुई। उस हाथी को जानने के लिए चित्त में कुछ आन्दोलन शुरू हुआ। मार्गणायां प्रविष्टः । आत्मनोऽतीतमन्वेष्टुं स्वानुभूता- उसके बाद अपोह हुआ—'क्या मैं हाथी था ?' यह तर्कणा (मीमांसा) तीतसीमायां प्रवेशं कृतवान् । अतीतं ध्यायता ध्यायता करते हुए वह मार्गणा में प्रविष्ट हुमा। अपने अतीत का अन्वेषण करने तेन गवेषणा प्रारब्धा। यथा गौः आहारान्वेषणायां के लिए वह अपने द्वारा अनुभूत अतीत की सीमा में प्रवेश कर गया। प्रवृत्ता पूर्वोपलब्धमाहारस्थानं प्राप्नोति तथा गवेषणां अतीत का चिन्तन करते-करते उसने गवेषणा प्रारम्भ की। जैसे कुर्वाणेन मेघकुमारेण एकाग्राध्यवसायेन हस्तिजन्मनः आहार की अन्वेषणा में प्रवृत्त गाय पूर्वप्राप्त आहार के स्थान को स्मृतिरुपलब्धा।
प्राप्त कर लेती है वैसे ही गवेषणा करते हुए मेघकुमार को एकाग्र
अध्यवसाय से हाथी के रूप में अपने जन्म की स्मृति उपलब्ध हो गई। तवावरणिज्जकम्मखओवसमेण-जातिस्मरणं द्विविध तदावरणीय कर्म के क्षयोपशम के द्वारा जाति-स्मरण ज्ञान भवति–सनिमित्तकं अनिमित्तकञ्च । केषाञ्चित् तदा- दो प्रकार का होता है-सनिमित्तक और अनिमित्तक । कुछ मनुष्यों वरणीयकर्मणां क्षयोपशमेन जायते, तद् अनिमित्तकम्। को तदावरणीय (जातिस्मृति को आवृत करने वाले) कर्मों का केषांचिद बाह्य निमित्तमुपलभमानानामेतत् प्रादुर्भवति, क्षयोपशम होने से जाति-स्मरण ज्ञान होता है, वह अनिमित्तक है। तत् सनिमित्तकम् ।
कुछ मनुष्यों को बाह्य निमित्त उपलब्ध होने पर वह प्राप्त होता है, वह
सनिमित्तक है। इद जातिस्मरण मतिज्ञानस्यैव एकः प्रकारोऽस्ति।
यह जाति-स्मरण मतिज्ञान का ही एक प्रकार है। इससे अनेन उत्कर्षतः पूर्ववर्तीनि नवसंज्ञिजन्मानि ज्ञातुं उत्कटत: पर्ववर्ती नौ ममनस्क जन्म जाने जा सकते हैं। शक्यानि ।
आचारांग वृत्ति के अनुसार जातिस्मृति ज्ञान से संख्येय जन्म आचारांगवृत्त्यनुसारेण संख्येयान् भवान् जातिस्मरो जाने जा सकते हैं। ज्ञातुमर्हति ।
सन्नीपुग्वे-यानि पूर्वजन्मानि ज्ञायन्ते तानि संजीपूर्व-जिन पूर्वजन्मों का ज्ञान किया जाता है वे समनस्क समनस्कजन्मानि एव । पूर्वजन्मसु यानि यानि अमनस्क- जन्म ही होते हैं। पूर्वजन्मों में जो अमनस्क जन्म होते हैं, उनको नहीं जन्मानि लब्धानि तानि ज्ञातुं न शक्यानि । अस्य सूचना जाना जा सकता। इसकी सूचना 'संजीपूर्व' इस विशेषण से मिलती है। 'सन्नीपुव्वे' इति विशेषणेन कृतास्ति ।
सर्वेषां पूर्वजन्मस्मृतिर्नोपलभ्यते। अस्मिन् विषये सबको पूर्वजन्म की स्मृति नहीं होती। इस विषय में तंदुलवेयालिय तंदुलवेयालियप्रकीर्णके एतत्कारणं निर्दिष्टमस्ति- प्रकीर्णक में यह कारण निदिष्ट है-'जन्म और मृत्यु के समय जो जायमाणस्स जं दुक्खं, मरमाणस्स वा पुणो।
दुःख होता है उस दुःख से सम्मूढ होने के कारण व्यक्ति को पूर्वजन्म तेण दुक्खेण संमूढो, जाई सरइ नऽप्पणो ॥
की स्मृति नहीं रहती।'
१. अंगसुत्ताणि ३: नायाधम्मकहाओ,, ११९० : तए णं तस्स मेहस्स अणगारस्स समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए एवम→ सोच्चा निसम्म सुभेहिं परिणामेहिं पसत्थेहिं अज्झवसाणेहि लेसाहि विसुज्झमाणीहि तयावरणिज्जाणं कमाणं खओवसमेणं ईहापूहमग्गणगवेसणं करेमाणस्स सण्णिपुग्वे जाईसरणे समुप्पण्णे, एयम सम्म अभिसमेइ । २. अंगसुत्ताणि २, भगवई, ११।११५-१७१ ।
३. सेनप्रश्न, उल्लास ३, प्रश्न ३४१ :
पुष्वभवा सो पिच्छई इक्क दो तिन्नि जाव नवगं वा। उरि तस्स अविसओ सहावओ जाइसरणस्स । ४. आचारांग वृत्ति, पत्र १९ : जातिस्मरणस्तु नियमतः
संख्येयानिति । ५. तंदुलवेयालियं, ३९ ।
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