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आचारांगभाष्यम्
७१. लज्जमाणा पुढो पास ।
सं०-लज्जमानान् पृथक् पश्य ।
तू देख, प्रत्येक संयमी साधक हिंसा से विरत हो संयम का जीवन जी रहा है। ७२. अणगारा मोत्ति एगे पवयमाणा।
सं०-अनगाराः स्म इत्येके प्रवदन्तः । और तू देख. कुछ साधु 'हम गृहत्यागी हैं' यह निरूपित करते हुए भी गृहवासी जैसा आचरण करते हैं—अग्निकायिक जीवों की हिंसा करते हैं।
भाष्यम् ७१,७२-सूत्रद्वयमिदं पूर्ववद् (सू० १७-१८) पूर्ववत् देखें-१७-१८ सूत्र । ज्ञातव्यम् ।
७३. जमिणं विरूवरूवेहि सत्थेहि अगणि-कम्म-समारंभेणं अगणि-सत्थं समारंभमाणे, अण्णे वणेगर वे पाणे विहिंसति ।
सं०--यदिदं विरूपरूपः शस्त्र: अग्निकर्मसमारम्भेण अग्निशस्त्रं समारभमाणः अन्यानप्यनेकरूपान् प्राणान् विहिंसति । वह नाना प्रकार के शस्त्रों से अग्नि सम्बन्धी क्रिया में व्याप्त होकर अग्निकायिक जीवों की हिंसा करता है। वह केवल उन अग्निकायिक जीवों को ही हिंसा नहीं करता, किन्तु नाना प्रकार के अन्य जीवों की भी हिंसा करता है। .
भाष्यम् ७३ - नियुक्तिकारेणाग्निकायिकजीवानां नियुक्तिकार ने अग्निकायिक जीवों के शस्त्रभूत (शस्त्रतुल्य) शस्त्रभूतानां वस्तूनां निरूपणं कृतमस्ति
वस्तुओं का निरूपण किया है१. मृत्तिका बालुका वा।
१. मिट्टी या बालु। २. जलम् ।
२. जल । ३. आर्द्रवनस्पतिः ।
३. गीली वनस्पति । ४. त्रसाः प्राणिनः।
४. त्रस प्राणी। ५. स्वकायशस्त्रम् -पत्राग्निस्तृणाग्नेः। पत्राग्नि
५. स्वकायशस्त्र-पत्तों की अग्नि तृण को अग्नि का शस्त्र __ संयोगात् तृणाग्निः अचित्तो भवति ।
होती है। पत्राग्नि के संयोग से तृणाग्नि अचित्त हो जाती है। ६. परकायशस्त्रम् -जलादि । आदिग्रहणात् 'कार्बन- ६. परकायशस्त्र-जल आदि। आदि शब्द से कार्बन-डाइडाई-आक्साइड' प्रभृतयः ।
आक्साइड आदि गृहीत हैं। ७. तदुभयशस्त्रम् - तुषकरीषादिमिश्रितोऽग्निः
७. तदुभयशस्त्र-भूसी और सूखे गोबर आदि से मिश्रित अग्नि अपराग्नेः ।
दूसरी अग्नि का शस्त्र होती है । ७४. तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेइया।
सं०-तत्र खलु भगवता परिज्ञा प्रवेदिता ।
इस विषय में भगवान् ने परिज्ञा का निरूपण किया है । ७५. इमस्स चेव जीवियस्स, परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाई-मरण-मोयणाए, दुक्खपडिघायहे।
सं०-अस्मै चैव जीविताय, परिवन्दन-मानन-पूजनाय, जाति-मरण-मोचनाय, दुःखप्रतिघातहेतुम् । वर्तमान जीवन के लिए, प्रशंसा, सम्मान और पूजा के लिए, जन्म, मरण और मोचन के लिए, दुःख-प्रतिकार के लिए१. आचारांग नियुक्ति, गाथा १२३,१२४ :
पुढवी आउक्काए उल्ला य वणस्सई तसा पाणा। बायरतेउक्काय एवं तु समासओ सत्थं ॥ किचि सकायसत्थं किचि परकाय तदुभयं किंची। एयं तु दव्वसत्थं भावे य असंजमो॥
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